मेघा
डॉ. सुनीता जाजोदिया
घनघोर वेदना में घुमड़, आसमान में छा जाती हूँ
कहने को क़िस्से अपने, बिजली बन तड़प जाती हूँ।
पीकर धरा का भीषण ताप, श्यामल हो जाती हूँ
बरसा कर अमृतधारा, उज्जवल हो जाती हूँ।
प्रकृति है मेरी आत्मजा, सजाने उसे छलक जाती हूँ
पेड़ पौधे नाती दुलारे, प्यार से भिगोने बरस जाती हूँ।
विरह में तड़पने वालों को, मिलन का संदेशा दे जाती हूँ
मन के दग्ध मरुधर को, भावों से सरसा जाती हूँ।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
- लघुकथा
- साहित्यिक आलेख
- कहानी
- कार्यक्रम रिपोर्ट
-
- अनुभूति की आठवीं 'संवाद शृंखला' में बोले डॉ. बी.एस. सुमन अग्रवाल: ‘हिंदी ना उर्दू, हिंदुस्तानी भाषा का शायर हूँ मैं’
- अनुभूति की ‘गीत माधुरी’ में बही प्रेमगीतों की रसधार
- डब्लूसीसी में उत्कर्ष '23 के अंतर्गत हिंदी गद्य लेखन कार्यशाला एवं अंतर्महाविद्यालयीन प्रतियोगिताओं का आयोजन
- डब्लूसीसी में डॉ. सुनीता जाजोदिया का प्रथम काव्य संग्रह: ‘ज़िन्दगी का कोलाज’ का लोकार्पण
- तुम्हारे क़दमों के निशान दूर तक चले लो मैंने बदल ली राह अपनी: मेरी सृजन यात्रा में मोहिनी चोरड़िया से संवाद
- मैं केवल एक किरदार हूँ, क़लम में स्याही वो भरता है: अनुभूति की पंचम ‘संवाद शृंखला’ में बोले रमेश गुप्त नीरद
- व्यंग्य का प्रभाव बेहद मारक होता है: अनुभूति की पंचम संवाद शृंखला में बीएल आच्छा ने कहा
- श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन और चिंतन-मनन आवश्यक: अनुभूति की चतुर्थ ‘संवाद शृंखला’ में बोले डॉ. दिलीप धींग
- श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन और चिंतन-मनन आवश्यक: अनुभूति की तृतीय ‘संवाद शृंखला’ में बोले डॉ. दिलीप धींग
- सच्ची कविता स्वांत: सुखाय की अभिव्यक्ति है, इसमें कोई मायाजाल नहीं होता: अनुभूति की द्वितीय ‘संवाद शृंखला’ में बोले डॉ. ज्ञान जैन
- सृजन यात्रा में अब तक नहीं पाई संतुष्टि: अनुभूति की प्रथम 'संवाद शृंखला' में बोले प्रहलाद श्रीमाली
- विडियो
-
- ऑडियो
-