लैदर बैग
डॉ. सुनीता जाजोदिया
शहर के सबसे प्रसिद्ध लेदर शोरूम का सेल्समेन उसे एक से एक ख़ूबसूरत बैग दिखा रहा था। इन बैग की ख़ूबियों को वह बड़े आकर्षक अंदाज़ में बयान कर रहा था, यह बैग मशहूर डिज़ाइनर ने ख़ास डिज़ाइन किया है। पैरिस के फ़ैशन शो में सबसे बड़ी मॉडल ने इस बैग का प्रदर्शन किया था। एक ही पीस है, यह सिर्फ़ आपके पास ही होगा, दूसरा किसी के पास नहीं। यह इस शोरूम की ख़ास बात है—सिंगल कलर और डिज़ाइन। ठीक ही तो कह रहा था, उसे भी तो ऐसे ही बैग की तलाश थी। उसकी सेल्समेनशिप से वह काफ़ी प्रभावित हुई थी।
मिसेज खन्ना का बैग अभी भी उसकी आँखों में घूम रहा था। पिछली किटी पार्टी में अपने उस ख़ूबसूरत बैग के कारण ही वह चर्चा में रही थी। हर कोई मिसेज खन्ना के उस नायाब बैग की तारीफ़ कर रहा था। डिज़ाइनर साड़ियाँ, ड्रेस, ज्वेलरी, और एक्सेसरीज़ के कारण वर्ना हमेशा प्रतिभा ही चर्चा के केंद्र में होती थी। पर पिछली पार्टी में मिसेज खन्ना ने बाज़ी मार ली थी एक बैग के कारण। ‘ऐसा कुछ ख़ास अच्छा भी नहीं था’ प्रतिभा ने सोचा और वह बैग छाँटने लगी। अगले हफ़्ते शहर में वेजिटेरियन सम्मेलन होने वाला था। लेडीज़ क्लब की प्रेज़िडेंट के बतौर उसे भाग लेना था। ‘शाकाहार के प्रचार में महिलाओं का योगदान’ पर उसे पाँच मिनट का अपना वक्तव्य भी प्रस्तुत करना था।
“मैडम, ये मगरमच्छ का चमड़ा है, ये शीप का और ये काऊ का।”
उस आख़िरी बैग पर उसकी नज़र अटक गई। भूरे रंग का वह बैग बड़ा ही सुंदर था। हल्के भूरे रंग में गहरे रंग के चकत्ते बैग की लुक को बढ़ा रहे थे। चतुर सेल्समेन उसकी पसंद को ताड़ कर बैग की ख़ूबियाँ बताने लग गया।
“काउ लैदर—गाय का चमड़ा—बैग के लिए सबसे अच्छा होता है। यह मज़बूत और आकर्षक होता है। अगले पाँच-सात सालों तक बिल्कुल ख़राब नहीं होगा।”
बैग पर हाथ फेरते हुए उसे वही अनुभूति हुई जब दादी ने उसका हाथ पकड़ कर भूरी गाय की पीठ सहलाई थी।
उसे याद है छुट्टियों में जब पहली बार मम्मी-पापा के साथ वह गाँव गई थी तो आँगन में गाय को देखकर वह रोमांचित भी हुई और डर भी गई थी। दो-तीन दिन तक वह भूरी गाय के पास तक नहीं गई। फिर दादी ने उससे कहा, “डरो नहीं, ये जानवर हमारा नुक़्सान नहीं करते परती, ये तो मरने के बाद भी हमारे काम आवे हैं।”
“मरने के बाद भी कैसे दादी?” तब सात वर्षीय प्रतिभा दादी की बातों को समझ नहीं पाई थी। ‘ठीक ही तो कहा था दादी ने’ मन ही मन उसने बुदबुदाया। फिर तो दादी के साथ-साथ भूरी को दाना-पानी खिलाने में वह भरपूर मदद करने लगी।
जब प्रतिभा भूरी की पीठ सहलाती तो उसके कोमल स्पर्श से मानो वह आनंद विभोर हो उठती थी और प्रेम के आवेग में भूरी उसकी हथेलियों को चाटने लगती। वह हैरानी से दादी को ग्वाली की सफ़ाई करते, धूप देते और गाय को नहलाते देखती थी। एक बार सर्दियों की रात में टाट का कंबल भी उढ़ाते हुए उसने देखा था। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, “यह कंबल क्यों दादी?”
“गऊमाता के भी जीव होवे है, सर्दी लगती है उसे भी।”
‘ये जीव क्या होता है’, सोचते-सोचते प्रतिभा को नींद आ जाया करती थी।
उस बार जब वह गाँव पहुँची थी तो उसके दूसरे ही दिन भूरी ने एक सुंदर बछड़े को जन्म दिया था। काले रंग का था वह, बड़ा ही चिकना-चिकना और सुंदर, एकदम मेमने सा। बड़ी-बड़ी आँखें, पतली टाँगें और दो-तीन दिन बाद ही वह आँगन में कुलाँचें भरते हुए दौड़ने लगा था। आँगन फाँद कर घर के भीतर की ओर कमरों में भी घुस जाता था वह। दादी के कमज़ोर शरीर से दौड़ा नहीं जाता और वे उसे आवाज़ लगाती, “अरे परती, देख तो, जरा कहाँ है वह। पकड़ तो उस श्यामा को, दाल-दूध सब गिरा देगा। चौका उढाल कर बाँध दे उसे ग्वाली घर में।”
श्यामा के पीछे भागने में प्रतिभा को बड़ा मज़ा आता। प्रतिभा को अपने पीछे देख श्यामा और ज़ोर से दौड़ने लगता। जब वह थक जाती तो पुचकार कर उसे अपने पास बुलाती और गोद में भर कर उसे भूरी के पास वाले खूँटे से बाँध देती थी। प्रतिभा को लगता जैसे भूरी एहसानमंद नज़रों से उसे अपलक निहार रही है—बेटे को माँ से जो मिला दिया था उसने।
“मैडम, आपका बिल तैयार है।”
ओह! हाँ! प्रतिभा ने अपने लहराते बालों को झटक दिया। उसने अपने सिर पर हल्की चपत जड़ी। ‘वह भी जाने बचपन की किन गलियों में खो गई’। बिल चुका कर बैग को हाथ में थाम कर वह तेज़ी से अपनी कार की तरफ़ बढ़ गई।
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