लहर

डॉ. सुनीता जाजोदिया (अंक: 235, अगस्त द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

चंचल लहरें पूरे ज़ोर-शोर से उछल-कूद कर ख़ूब शोर मचा रही थीं। क्षितिज पर नवोदित सूरज अपनी लाली बिखेर जगत को ऊर्जावान कर स्पंदित कर रहा था। एक के बाद एक पीछे-पीछे आती लहरें कभी तट को बिन छुए लौट आतीं और कभी उसे पूरी तरह भिगो देतीं। उसे बचपन का दौड़-पकड़ खेल याद आ गया जिसमें वह पूरी ईमानदारी के साथ खेलती और छोटा भाई सदा बेईमानी की तिकड़म के साथ। 

शहरवासी गर्मी से राहत पाने के लिए लहरों में भीग रहे थे। तट के किनारे लहरों की मौज में डूबते हुए नज़र पड़ी एक परिवार पर, माता-पिता और सात-आठ की उम्र का बच्चा। तीनों हाथ पकड़़ कर खड़े थे मानो वे मिलकर लहरों को रोक लेंगे। लहरों संग कूदते हुए बच्चा हाथ छुड़ा कर अचानक आगे बढ़ गया। पिता ने उसे पीछे खींच दो-चार चाँटे जड़ दिए। सकपका कर बच्चा ठिठक गया। तुरंत उसने अपने आसपास नज़रें घुमाईं, उसने भी उस समय बच्चे पर से नज़रें घुमा लीं। बच्चे की माँ ने झट आगे बढ़ कर उसका हाथ थाम गले से लगाया और वह फिर लहरों संग उछल कूद करने लगा। 

बदन और कपड़ों पर चिपकी रेत को झाड़, दिल में लहरों का आह्लाद लिए वह शहर की ओर चल पड़ी। 

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