इस बार वसंत तुम ऐसे आना

15-12-2024

इस बार वसंत तुम ऐसे आना

डॉ. सुनीता जाजोदिया (अंक: 267, दिसंबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

रिश्तों की सर्द ज़मीं पर
कुनकुनी धूप बनकर उतरना
तकरारों से बँटे घरों में 
खुला झोंका बनकर बहना
अनबोले कोनों की सीलन में 
नेह का ताप बनकर पिघलना 
इस बार वसंत तुम ऐसे आना। 
 
धर्म की सांप्रदायिक दुकानों पर 
इंसानियत का ग्राहक बनकर आना 
चीरहरण के चौराहों पर 
सखा बनकर चीर बढ़ाना 
दुराचारों के दलदल में 
शक्ति-कमल बनकर खिलना
इस बार वसंत तुम ऐसे आना। 
 
छूकर केवल इस बार न जाना
श्याम रंग में ऐसे भिगो देना
समाधि में लीन हो जाऊँ 
भवसागर से तर जाऊँ
इस बार वसंत तुम ऐसे आना
परम वसंत मेरा बन जाना!

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