कहती है बिटिया . . . 

01-08-2022

कहती है बिटिया . . . 

डॉ. सुनीता जाजोदिया (अंक: 210, अगस्त प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

बिटिया है अनमोल, बोलो ये मीठे बोल। 
मानवता की ये बेल, जीवन में देती रस घोल॥
 
क्यूँ हो मुझसे शर्मसार, ईश्वर का मैं उपहार। 
जीवन है मुझसे गुंजार, मानव की मैं सृजनहार॥
 
मिटाओ ना कोख में मुझे, मिटा लो मन का मैल। 
कोसो न क़िस्मत को अपनी, छोड़ो कुरीतियों का खेल॥
 
अबला मेरी प्रकृति सही, कायरता मेरी कहानी नहीं। 
संघर्ष मेरी नियति सही, हार मेरी ज़ुबानी नहीं। 
 
शोषित मेरी अस्मिता, सही ठोकर मेरी मजबूरी नहीं। 
अवांछित मेरी ज़िन्दगी सही, साँसें मेरी पराधीन नहीं॥
 

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