रिवाज़
रीता तिवारी 'रीत'आज सुबह से ही घर में चहल-पहल थी। प्रिया काफ़ी ख़ूबसूरत लग रही थी। आज उसकी सगाई थी; घर को काफ़ी ख़ूबसूरती से सजाया जा रहा था। गुप्ता जी अपनी इकलौती बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे। घर में मेहमानों का आना-जाना लगा हुआ था। गुप्ता जी इस शादी से काफ़ी ख़ुश थे। लड़का बहुत बड़ा बिज़नेसमैन था। उसका दिल्ली में ख़ुद का बहुत बड़ा बिज़नेस था। बेटी की अच्छी शादी हो जाए, इसी सपने के साथ गुप्ता जी अतीत की यादों में खो गए।
आज से 16 साल पहले प्रिया के जन्मदिन की वह शाम जब घर में जश्न का माहौल था। गुप्ता जी बड़े ही ख़ुश थे कि अचानक घर में एक बहुत बड़ा हादसा हो गया। सीढ़ियों से गिरकर अलका घायल हो गई। अलका गुप्ता जी की पत्नी थी। चारों ओर अफ़रा-तफ़री हो गई। आनन-फ़ानन में उन्हें अस्पताल ले जाया गया। जहाँ डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। गुप्ता जी संज्ञा शून्य हो चुके थे। पर नियति के आगे किसकी चलती है। कलेजे पर पत्थर रखकर उन्होंने अकेले ही अपनी बेटी की परवरिश की। उसे माँ पापा दोनों का प्यार-दुलार दिया और उसे एक क़ाबिल डॉक्टर बनाया। आज वह डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा में भरपूर योगदान दे रही है। अतीत की यादों की बीच में उन्हें लगा कि कोई उन्हें झकझोर रहा है।
"यह फूल कहाँ रखूँ," गुप्ता जी अपनी आँखों से आँसू को पोंछते हुए उठे, "अरे हाँ फूल को वहाँ पर रख दो।” उनका मन फिर असीमित शंकाओं से भर गया। सब कुछ अच्छे से हो जाए; बस भगवान कोई बाधा ना हो! धीरे-धीरे घर में मेहमानों का समूह भर गया। सभी लोग इकट्ठे हो गए। गुप्ता जी बहुत ही बेसब्री से रिश्तेदारों के आने का इंतज़ार ही कर रहे थे कि अचानक फोन की घंटी बजने लगी– ट्रिन ट्रिन ट्रिन . . . गुप्ता जी ने फोन रिसीव किया।
“हेलो,” उधर से होने वाले समधी की आवाज़ थी, “हेलो हमें आपसे कुछ बात करनी है। सोचा रस्म पूरी करने से पहले यह बात आपसे कर लूँ तो ज़्यादा अच्छा होगा। आदर्श हमारा इकलौता बेटा है तो हम इसकी शादी में कोई भी समझौता नहीं करना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि दहेज़ की सारी बातें पहले ही क्लियर हो जाएँ। बाद में कोई भ्रम की स्थिति ना रहे।”
“पर यह सारी बातें तो हो चुकी थीं, अब क्या बात करनी है?”
“हाँ, समधी जी बातें तो हो चुकी थीं पर हमें लगता है हमने बहुत ही कम पर बात पक्की कर दी है। आदर्श इतना बड़ा बिज़नेसमैन है और हमारा इकलौता बेटा भी है; तो यह दहेज़ कुछ कम लग रहा है। अब शादी बार-बार तो होगी नहीं, तो सोचा आप से स्पष्ट बात कर लूँ। बीस लाख और एक गाड़ी की व्यवस्था कर लीजिए। तभी हम सगाई कर पाएँगे नहीं तो आप इस रिश्ते को भूल जाइए।”
“पर इतने कम समय में रक़म जुटाना तो संभव नहीं हो पाएगा समधी जी,” यह कहते हुए गुप्ता जी का गला भर गया।
“पर हम कुछ नहीं कर सकते,” उधर से आवाज़ आई।
घर में मेहमान भरे हुए थे। आज फिर मेरी बेटी की ख़ुशियाँ ग़म में नग बदल जाएँ; यह सोचकर गुप्ता जी काँप उठे। यह कैसा रिवाज़ है जो आज मेरी बेटी की ख़ुशियों पर ग्रहण बन कर छा गया है। अभी गुप्ता जी यह बड़बड़ा ही रहे थे कि प्रिया सामने खड़ी थी और पापा से पूछ रही थी– "पापा. . . पापा आपकी आँखों में आँसू क्यों? क्या हुआ?”
“कुछ नहीं बेटा, तुम जाओ।”
“नहीं पापा आप को बताना पड़ेगा,” और गुप्ता जी ने अपनी बेटी से सारी बातें बताईं जो उनकी और समधी जी की हुई थीं।
“पापा आप बताइए क्या मैं ऐसे इंसान के साथ ख़ुश रह पाऊँगी जो इतना लालची है? पापा मुझे शादी नहीं करनी।”
“पर बेटी अब तुझसे कौन शादी करेगा? हमारे यहाँ का रिवाज़ है अगर किसी लड़की की शादी टूट जाती है तो, लोग उसे अच्छी नजरों से नहीं देखते हैं और जल्दी कोई शादी के लिए तैयार भी नहीं होता।”
“पापा जो रिवाज़ लोगों को ख़ुशी ना दे उसका क्या मतलब? आप उन्हें मना कर दीजिए।”
प्रिया अपने कमरे में चली गई और प्रिया उन यादों में खो गई जब कॉलेज का पहला दिन था और वह पहली बार वह रूद्र से मिली थी। उसे वह पहली नज़र में यह सुलझा हुआ लड़का लगा और वह भी प्रिया को पसंद करता था। वह दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे, लेकिन समाज और परिवार के डर के कारण कभी अपने घरवालों को यह बात नहीं बताई थी। कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म होते ही दोनों के रास्ते भी अलग-अलग हो गए। इधर प्रिया के पापा ने उसकी शादी आदर्श से तय कर दी और जो हुआ– प्रिया के सामने था। वह सोच रही थी... आज मुझे पापा को रुद्र के बारे में बताना होगा। शायद सब कुछ अच्छा हो जाए। वह मन को बड़ा करके अपने पापा के पास पहुँची। प्रिया ने गुप्ता जी को रुद्र के बारे में बताया तो कुछ समय के लिए वह सकते में आ गए, फिर कहा, “बेटा क्या उसके घर वाले इस बात के लिए राज़ी होंगे?”
“पापा बात करने में क्या बुराई है? शायद बात बन जाए।”
प्रिया ने रूद्र को सारी बातें बताईं और रूद्र ने अपने घर वालों को। उसके घर वाले शादी के लिए तैयार हो गए और ख़ुशी-ख़ुशी दोनों की सगाई हो गई।
आज गुप्ता जी के चेहरे पर संतोष के भाव थे। आज उनकी सही मायनों में ज़िम्मेदारी पूरी हो गई थी।
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