पंछियों से भरा द्वार
रीता तिवारी 'रीत'चिड़ियों के कलरव से गूँजता है मेरा द्वार,
चुगती है दाना पानी पी के चली जाती है।
देख मनमोहक निराली प्यारी छवि उनकी,
मन में हमारे छवि उनकी समाती है।
"रीत" कहे प्रीत आ ही जाता प्यारे पंछियों पे,
जिनकी चहकती धुन हवा में समाती हैं।
चिड़ियों के कलरव से गूँजता है मेरा द्वार,
चुगती है दाना पानी पी के चली जाती है।
उनके बहाने गिलहरियों के झुंड देख,
मन में समाती छवि उनकी सुहाती है।
पूर्ण लालिमा के साथ उगता उदित जब,
तृप्ति का भाव ले सहज चली आती हैं।
रीत" कहे नित्य प्रति देखने को मन मेरा।
द्वार पर नज़र अनायास टिक जाती है।
वाह रे! प्रकृति तेरी कैसी है अनोखी छवि,
तेरी कलाकृतियों से रंग भर जाती है।
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