रीत की नीति
रीता तिवारी 'रीत'कुण्डलिया
कंचन सी काया मिली, कर इसका उपयोग।
तृप्त ना होगा मन कभी, जीवन है एक भोग।
जीवन है एक भोग ना इसका अंत कहीं भी।
लग कलंक शशि में, गौरव का अंत कहीं भी।
कहे “रीत“ की नीति, जीवन की कली खिली।
करने को सत्कर्म, कंचन सी काया मिली।
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