दोहरी मार फ़ेसबुक का प्यार
रीता तिवारी 'रीत'सुबह-सुबह श्रीमती जी जब चाय लेकर आई, दुखी आत्मा को फ़ेसबुक पर व्यस्त देख झल्ला उठी।
"क्या सुबह-सुबह मोबाइल लेकर बैठ जाते हो। मैं तो तुम्हारी इस आदत से तंग आ गई हूँ।"
वह बड़बड़ाते हुए अंदर चली गई और मैं दुखी आत्मा फिर से फ़ेसबुक पर अभी कुछ सोच ही रहा था कि अचानक मैसेंजर पर उसका मैसेज देखकर ऐसे खिल गया जैसे फूल गोभी का फूल।
उधर से मैसेज आया।
"क्या कर रहे हो?"
मैंने भी जल्दी से प्रति उत्तर में लिखा–"चाय पी रहे हैं, तुम भी पियोगी?"
उधर से मैसेज आया– "आओ मिलकर चाय पीते हैं।"
उसका आमंत्रण सुनकर गुलाब के फूल की तरह खिलने की बजाय मैं पतझड़ की पत्तियों सा ऐसे सूख गया, जैसे उन पर पाले की मार पड़ गई हो।
दुखी आत्मा ने उसे दूसरी बातों में उलझाने के उद्देश्य से कहा– "अभी नहीं, फिर कभी; आज मैं बहुत व्यस्त हूँ।"
मैंने व्यस्त पर कुछ ज़ोर देकर इस प्रकार बताया जैसे दुनिया का सबसे व्यस्त इंसान मैं ही हूँ।
उधर से मैसेज आया– "अच्छा अपनी एक न्यू पिक भेजो।"
दुखी आत्मा ने झट से अपने कॉलेज के दिनों की एक प्यारी मुस्कान बिखेरती सुंदर सी फोटो भेज दी।
उधर से मैसेज आया– "बहुत सुंदर लग रहे हो।"
दुखी आत्मा ने भी एक स्माइल इमोजी भेज दी।
अभी फ़ेसबुक के प्यार के समुद्र में गोते लगा ही रहा था कि श्रीमती जी की बेसुरी आवाज़ फिर कानों में ऐसे घुली जैसे सौ घंटियाँ एक साथ बजा दी गई हों। उन्होंने मेरे हाथ से मोबाइल को दूर रखते हुए कहा– "ऑफ़िस जाना है कि यहीं पर ही पसरे रहोगे?"
दुखी आत्मा ने एक मुस्कान बिखेरते हुए कहा– "आज बड़ी सुंदर लग रही हो। क्या बात है पर जब ग़ुस्सा करती हो तो बिल्कुल टमाटर जैसे लाल हो जाती हो।"
दुखी आत्मा की इस बात को सुनकर श्रीमती जी शरमाती हुई बोली– "आप भी ना आपकी आदत नहीं जाएगी।"
दुखी आत्मा दोनों ओर से संतुष्टि का भाव चेहरे पर लिए–" मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू," गुनगुनाते हुए बाहर निकल गया ।
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