हमारे बुज़ुर्ग हमारी धरोहर
रीता तिवारी 'रीत'जिनसे घर की शान है,
जो घर की पहचान है।
करो कभी ना उन्हें उपेक्षित,
उनसे घर का मान है।
जिनके हाथों ने हैं सँभाला,
घर की इस फुलवारी को।
उन्हें प्रेम दो इस पड़ाव पर,
समझो ज़िम्मेदारी को।
उनका ऋण ना चुका सकेंगे,
चाहे कर ले लाख प्रयास।
मगर अगर आदर दे उनको,
मिट जाए सारे संताप।
बड़े बुज़ुर्गों के चेहरे पर,
आती गर मुस्कान है।
समझो पावन घर का कोना,
मिलता यश सम्मान है।
’रीत’ कहे गर आदर दोगे,
तो ही आदर पाओगे।
जैसा कर्म करोगे सोचो,
वैसा ही फल पाओगे।
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