प्रेम प्रतीक्षा
रीता तिवारी 'रीत'सूख रही हूँ पतझड़ सी,
प्रिय तेरी प्रेम प्रतीक्षा में।
पथ तेरे रहे निहार नयन,
अकुलाई प्रेम प्रतीक्षा में।
जैसे पपीहे की हुई दशा,
प्रियतम वियोग में सुनो सखी!
वैसे मेरा मन व्याकुल है,
प्रिय तेरी प्रेम प्रतीक्षा में।
मेरे नैनों की कोरों में,
मोती बन आँसू सूख रहे।
पथ तेरा व्यथित निहार रही,
प्रिय तेरी प्रेम प्रतीक्षा में।
यह "रीत" प्रीत से विमुख हुई,
प्रियतम वियोग में मन व्याकुल ।
अकुलाई सकुचाई हूँ मैं ,
प्रिय तेरी प्रेम प्रतीक्षा में।
आ जाओ अब ना देर करो!
मुझे प्रीत की रीत से पूर्ण करो!
तेरे प्रेम में प्यासी चातक सी,
राह निहारूँ प्रेम प्रतीक्षा में।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कहानी
- कविता
-
- आशियाना
- आस्था के स्वर
- कजरारे बादल
- चूड़ियाँ
- जन्मदिवस पर कामना
- जीवंत प्रेम
- नशा
- पंछियों से भरा द्वार
- प्यार का एहसास
- प्यारा बचपन
- प्रकृति की सीख
- प्रेम प्रतीक्षा
- फिर आया मधुमास
- बारिश की बूँदों की अनकही बातें
- भारत का यश गान
- मधुर मिलन की आस
- माँ का आँचल
- मुसाफ़िर
- मैं बाँसुरी बन जाऊँ
- यह कैसा जीवन है?
- रिश्ते
- रूढ़ियाँ
- स्त्री की कहानी
- स्त्री है तो जीवन है
- हमारे बुज़ुर्ग हमारी धरोहर
- ज़िंदगी एक किताब है
- गीत-नवगीत
- कविता-मुक्तक
- बाल साहित्य कहानी
- लघुकथा
- स्मृति लेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-