पृथ्वी

डॉ. परमजीत ओबराय (अंक: 232, जुलाई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

पृथ्वी में है धैर्य, 
पर पृथ्वीलोक के—
मानव में नहीं। 
 
पानी में है निर्मलता, 
पर मानव मन में नहीं। 
 
सूर्य में है तेज, 
पर मानव मन में—
तेज नहीं। 
 
चंद्र में है शीतलता, 
पर मानव मन—
शीतल नहीं। 
 
पशु-पक्षियों में है
मैत्री भाव, 
पर मानव में है—
इसका अभाव। 
 
पर्वत में है स्थिरता, अडिगता, 
पर मानव में—
ये सब नहीं। 
 
मिट्टी में न भेदभाव, 
पर मानव में—
है केवल यही। 
 
फूल हैं सदा मुस्काते
पर मानव सदा—
मुस्काता नहीं। 
 
हवा में है कोमलता, 
पर मानव में—
है कठोरता। 
 
पानी में है मेल-भाव, 
पर मानव में—
यह भाव नहीं। 
 
भगवान ने बनाया इन्हें, 
पर इनसे कुछ—
सीखने का, 
मानव को समय नहीं। 

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