देना होगा

01-05-2024

देना होगा

डॉ. परमजीत ओबराय (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

यह जग है एक मेला, 
सबको जाना है वहाँ अकेला। 
जीवन-भर झंझावातों से है
यह मानव खेला। 
 
जो हैं अपने
होंगे दूर धीरे-धीरे, 
जब आएगा अंतिम चरण
जीवन का, 
होंगे बहुत से सवाल
मन में तेरे। 
 
मेरा घर, मेरा परिवार, मेरे बच्चे
न देंगे पूर्ण साथ तेरा
पर बनेंगे सब सच्चे। 
लगेगा जीवन बीत रहा
बन सपना, 
साथी-रिश्तेदार थे जो
साथ मेरे, 
था मेरी सोच का धोखा। 
 
सुकर्म कर
न दुखाएँ दिल किसी का, 
क्योंकि—
न होगी वहाँ सुनवाई
आपके किसी कुकर्म की, 
देना होगा लेखा-जोखा
जब अदालत में ईश की। 

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