विचरण
डॉ. परमजीत ओबरायस्वच्छन्द आसमान में–
उड़ने को आतुर,
शरीर रूपी झरोखे से–
यह आत्मा।
भगवान का पवित्र अंश,
जो सबमें है–
हाँ समाया,
जिसे–
है विधाता ने रचाया।
शरीर रूपी घट में–
वह बहुत हुई कलुषित,
पापों से ईर्ष्या से–
उसे धुलना है,
सँवरना है।
ज्वालामुखी में भी–
जब ज्वाला धधकती है,
लावा बन–
निकलती है वह तब।
है आत्मा शरीर में–
प्राणदेवी कहलाती,
जब चली जाती–
यह देह से,
तब यह देह–
है मृत कहलाती।
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