जब स्वयं न कर पाए हल,
किसी समस्या का–
तो बड़ी कुर्सी का सहारा क्यों?
सही सलामत मनुष्य को,
लाठी का सहारा क्यों?
लाठी शोभा देती है –
विकलांग को,
क्या रात का अंधकार–
उजाले से युद्ध नहीं करता?
वह जाता तब,
जब उजाला है आता।
अज्ञान रूपी अंधकार पर –
उजाले रूपी ज्ञान की विजय,
निश्चित है।
हरेक का,
विलोम है।
सदा जय न होगी–
अंधकार की,
यह तय है।