जन्म लेते ही

15-09-2022

जन्म लेते ही

डॉ. परमजीत ओबराय (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

जन्म लेते ही इंतज़ार है करती, 
इतना लंबा होगा इंतज़ार—
सोच न घबराती। 
न जाने किसने है पकड़ा उसे, 
किन्तु बीच-बीच में—
मौक़ा पाकर आती, 
पर—
केवल सताती। 
वह है भी हठी, 
जो रोकने पर भी—
है न रुकती, 
सच्चा प्यार है उसे हमसे—
हमारे प्राण हैं वह जैसे। 
सच्ची भक्तिन की भाँति—
न मिलने तक, 
मिलती है—
न उसे शान्ति। 
है वह शाश्वत—
बाक़ी सब नश्वर, 
जानकर भी हम—
उपेक्षा करते, 
हम उसकी क्षण-क्षण। 
करते प्यार उसे—
जिसे न ज़रूरत है, 
जिसकी। 
काल रूप में जब—
है वह मँडराती, 
तब धीरे-धीरे समझ, 
सबसे पहले है जाती। 
थे प्रेमी-प्रेमिका की भाँति—
ले जाने को प्राण हमसे, 
जैसे अपने सपने
है वह सजाती। 
अन्य सब देखकर—
इतना न हैं समझते, 
जीवन रूपी सपने—
में हम, 
क्यूँ यूँ ही हैं उलझते। 

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