मन

डॉ. परमजीत ओबराय (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

इच्छा रूपी पंख लगाकर—उड़ता है मन, 
पाने को
हर वस्तु, 
हर क्षण। 
 
कुछ इच्छाएँ—
होतीं पूरी, 
कुछ रह जातीं—
अधूरी। 
 
अधिक इच्छाओं के—
 पंख, 
उड़ नहीं पाते
सपने सभी, 
व्यर्थ रह जाते। 
 
इच्छारूपी पंखों को—
सूखने दो, 
हवा विश्राम की—
उनमें, 
जाने दो। 
 
जितना है बल—
जिनमें, 
करो उतनी इच्छाएँ—
वरना, 
पंख झड़कर—
या कट कर, 
रह न जाएँ। 

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