नदी की धारा या 

01-09-2025

नदी की धारा या 

डॉ. परमजीत ओबराय (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

निरंतर नदी की धारा—
सिखा रही है, 
कर्म करना—जीवन पथ पर निरंतर चलना। 
 
पर्वतों की विशालता—
सिखा रही है, 
रखनी—
दृढ़ता। 
 
समुद्र की गहराई—
सिखा रही है, 
गहरी—
सोच। 
 
आसमान की विस्तृतता—
सिखा रही, 
ज्ञान की—
विशद खोज। 
 
धरती की शक्ति—
सिखा रही, 
अद्वितीय—
धीरता। 
 
वृक्षों की छाया—
सिखा रही, 
भरपूर—
परोपकारिता। 
 
फूलों का खिलना—
सिखा रहा, 
मुस्कान। 
सूर्य का तेज—
सिखा रहा, 
कर्म कर—
सभी महान। 
 
चाँद की चाँदनी—
सिखा रही, 
शान्ति—
शायद हमें, 
उक्त तथ्यों को—
समझने में। 
 

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