जैसे . . .जैसे तुम

01-10-2024

जैसे . . .जैसे तुम

डॉ. परमजीत ओबराय (अंक: 262, अक्टूबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

जैसे-जैसे तुम
बड़े हुए, 
मेरे जाने की . . .
तैयारियाँ होने लगीं। 
 
जिस चेहरे पर थी . . .
 मुस्कान, 
अब उदासी सी है . . .
रहने लगी। 
 
कैसे चुपके से . . .
 तुम बड़े हो गए, 
साथ गुज़ारे हमने अनेक पल . . .
न जाने अब, 
थोड़े सिमट से गए। 
 
न जाने क्यों आता है? 
जीवन एक बार, 
यह मानने को . . .
न मन होता तैयार। 
 
मंज़िल पाओ . . .
बढ़ो आगे, 
न रहना बनकर . . .
भयभीत तुम, 
आशीर्वाद से आगे . . .
न कुछ, 
जान गए हो सब . . .
अब शायद तुम। 
 
आएँगी याद शायद घड़ियाँ . . .
तुम्हें भी, 
जो बिताई थीं . . .
न भूलोगे तुम कभी। 
 
जानते हो . . .
है जन्म से ही ईश की . . .
अपार कृपा 
तुम पर, 
रख याद न जाना भूल तुम . . .
सदा लेना नाम उसी का, 
जब आए याद मेरी न जाना भूल। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें