जिगर में प्यास हो तो अच्छा लगता है

15-02-2024

जिगर में प्यास हो तो अच्छा लगता है

संदीप कुमार तिवारी 'बेघर’ (अंक: 247, फरवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

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जिगर में प्यास हो तो अच्छा लगता है। 
समंदर साथ हो तो अच्छा लगता है। 
 
चली जाना जिधर चाहो ऐ मेरी जाँ, 
अभी तुम पास हो तो अच्छा लगता है। 
 
नहीं चाहत हज़ारों हों मेरे अपने, 
कोई भी ख़ास हो तो अच्छा लगता है। 
 
कि मैं चुपचाप रहता हूँ तुम गुमसुम सी, 
हमारी बात हो तो अच्छा लगता है। 
 
सफ़र में साथ चलने दो तन्हाई भी, 
किसी का साथ हो तो अच्छा लगता है
 
मैं तेरा अक्स हूँ तुम मेरी धड़कन हो, 
यही जज़्बात हो तो अच्छा लगता है। 
 
कि उसने ग़म दिया 'बेघर' तो ले लेना, 
कोई सौग़ात हो तो अच्छा लगता है। 

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