दिल लगाना  पड़ा  दिल दुखाना  पड़ा

01-11-2021

दिल लगाना  पड़ा  दिल दुखाना  पड़ा

संदीप कुमार तिवारी 'बेघर’ (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

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दिल लगाना  पड़ा  दिल दुखाना  पड़ा।
प्यार  में   ज़िंदगी  को   गवाना   पड़ा।
 
यूँ 'तो' शामिल न थे इश्क़ में हम कभी,
आपके   प्यार   में  डूब   जाना  पड़ा।
 
आंधियाँ घर 'में' जिनके नहीं आ सकीं, 
उन 'के' घर ख़ुद दिये को बुझाना पड़ा।
 
बेख़बर   थे   कभी  आसमां  के  लिये, 
पर  ज़मीं  पे   हमें  लौट  आना  पड़ा। 
 
कौन रोता 'है'  किस के लिए सोच कर,
ज़िंदगी   भर   हमें    मुस्कुराना   पड़ा।
 
आप   जब   से मुझे आज़माने  लगे,
फिर मुझे आपको  आज़माना  पड़ा। 
 
आपने   ये   कहा  भूल  कर  देख  लो,
तो मुझे   आपका  ख़त जलाना  पड़ा।

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