आदमी तू बेकार नहीं है

15-02-2024

आदमी तू बेकार नहीं है

संदीप कुमार तिवारी 'बेघर’ (अंक: 247, फरवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

जीवन में रफ़्तार नहीं है। 
तुझमें कोई धार नहीं है। 
बस आगे बढ़ना भूल गया, 
आदमी तू बेकार नहीं है। 
 
बाधाएँ सफ़र में आएँगी। 
घनघोर उदासी छाएगी। 
पर किसी के आगे झुकना मत, 
कुछ पल भी डगर में रुकना मत। 
इस पार या उस पार नहीं है। 
कोई तेरा यहाँ यार नहीं है। 
बस आगे बढ़ना भूल गया, 
आदमी तू बेकार नहीं है। 
 
मुश्किल की कोई घड़ी है, 
कितनी देर तक अड़ी है? 
माना कि नदी तेज़ है बहती, 
पर सुन तो तुमसे क्या है कहती! 
तैरे तो पार हो जाओगे, 
इतना भी मँझधार नहीं है। 
बस आगे बढ़ना भूल गया, 
आदमी तू बेकार नहीं है। 
 
यहाँ जो भी तेरे अपने होंगे। 
एक दिन सारे सपने होंगे। 
उतना ही निज तुम बाँधना बंधन। 
हो खोने में ना जितना अड़चन। 
जगत है मेला पल भर का, 
इस में कोई सार नहीं है। 
बस आगे बढ़ना भूल गया, 
आदमी तू बेकार नहीं है। 
 
जीवन में रफ़्तार नहीं है। 
तुझमें कोई धार नहीं है। 
बस आगे बढ़ना भूल गया, 
आदमी तू बेकार नहीं है। 

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