बिसर   जाए   तेरा    चेहरा    दुहाई   हो

15-04-2022

बिसर   जाए   तेरा    चेहरा    दुहाई   हो

संदीप कुमार तिवारी 'बेघर’ (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

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बिसर   जाए   तेरा    चेहरा    दुहाई   हो।
मिरे  दिल  से  मेरी  जान  की  जुदाई  हो।
 
जिधर  देखूँ  तेरा  अक्स  ही  नज़र  आए,
कि  ऐसे   आईने   से   मिरी   रिहाई   हो।
 
मुहब्बत  का  सौदा  पूछिए  उन्हें  साहब,
कि जिसने दिल लेके जान तक गवाई हो।
 
ख़ुदा से कह दो  ये भी ख़ुदा  करे अब से,
कि उसकी चाहत में ही मिरी  ख़ुदाई  हो।
 
मुझे ही क्यूँ दोषी  मानते 'हैं' सब आख़िर,
कभी उसके भी  दर पे  मिरी  गवाही  हो।
 
भला  हो  तेरा  तू  छोड़  दे  मुझे  लेकिन,
भला वो जिसमें  मेरी भी कुछ भलाई हो।
 
कभी यूँ भी होता है  जहाँ  में  इस  बेघर,
हो  दिल अपना लेकिन प्रीत ही पराई हो

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