अदिति की आत्मकथा

अदिति की आत्मकथा  (रचनाकार - श्यामा प्रसाद चौधरी)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
हार की वापसी 

 

हमारे घर की दहलीज़ को लाँघकर बाहर निकलने के बाद आश्चर्यचकित होकर मैं सोचने लगा, क्या उसे एक पूर्ण असम्भव इंसान मानकर उसकी बार-बार प्रशंसा की जाए या उसे एक साधारण इंसान, चोर या धोखेबाज़ या दोनों माना जाए, तभी मेरे फोन की घंटी बज उठी। निरंजन का फोन था। एक मिनट में, ध्रुव के चारों ओर का चमत्कारिक वलय या फिर अपारदर्शी काँच का घर टूटकर चकनाचूर हो गया। 

निरंजन ने फोन पर कहा, “आज शाम आपके पास आना सम्भव नहीं होगा। कोई ड्राइवर नहीं है, ध्रुव भी, सुबह से नहीं है। इसके अलावा, नंदिता का हार अचानक कहीं आश्चर्यजनक रूप से गुम हो गया है। कहाँ रखा था, उसे याद नहीं आ रहा है। मिल भी नहीं रहा है, दुखी होकर वह रो रही है। सोच रहा था कि पुलिस को रिपोर्ट करूँ या नहीं।” 

मुझे जवाब देने का मौक़ा दिए बिना निरंजन पूछने लगा, “क्या आपका जान-पहचान वाला कोई पुलिस अधिकारी अभी भी यहाँ पर है?” 

मेरे मुँह से निकल पड़ा, “हार . . .?” जैसे कि मुझे पता है, नंदिता का खोया हुआ हार कहाँ पर रखा हुआ है। 

निरंजन फिर भी अनावश्यक शब्दों में समझा रहे थे, “वह नंदिता का सबसे पसंदीदा था। दरअसल, यह उनकी माँ का हार था। भारी भी काफ़ी था। आज की दरों पर बहुत महँगा। इसके अलावा, भावनात्मक लगाव था और अब भी है। ऐसे भी कौन चाहता है, कोई सामान खो जाए?” 

मैं उन्हें या नंदिता को कोई भाषण नहीं देना चाहता था, बल्कि मेरी आँखों के सामने नंदिता का स्निग्ध, छोटा गोल मुँह और लंबी गोरी गर्दन नज़र आने लगी कि जहाँ हार उसकी गर्दन में था और मैं उसके चेहरे की मुस्कान सहजता से देख रहा था। 

यह वही हार है, जिसे शायद अंजलि अब अपने गले में पहने हुए है और मेरी तरफ़ एक तरह की मॉडल की तरह ज़रूरत से ज़्यादा हिलते-डुलते आकर पूछ रही है, “कैसा लग रहा है?” 

मेरे प्रतिक्रियाहीन चेहरे को देखकर वह फिर पूछती है, “ऐसे क्यों देख रहे हो? हार नहीं, मुझे देखो। इसे पहनकर मैं कैसी लग रही हूँ?” 

जैसे कोई कठोर न्यायाधीश मौत की सज़ा सुनाने की तरह मैं कहता हूँ, “अच्छा नहीं लग रहा है। बिल्कुल भी नहीं।” 

यह दिखाने के लिए कि मेरे लिए प्रयोग में लाए आपके शब्द इतने कठोर और क्रूर हो सकते हैं—जरूरी नहीं है, वह कहती है, “ठीक है।” 

वह उसके गले से हार उतारने लगता है। उसकी पतली और लंबी गर्दन को पीछे की ओर झुकाते हुए अपने दोनों हाथों को उधर ले जाकर। वह अत्यंत आकर्षक लगती है। किसी पेशेवर जौहरी के पास विज्ञापन के लिए ऐसे पात्र को भेजता तो मुझे सर्वश्रेष्ठ विज़ुअलाइज़र का पुरस्कार मिल जाता। इसलिए मैं हमेशा से अंजलि से पुरस्कृत होना चाहता था। बहुत कम पुरुषों को उनकी पत्नियों द्वारा अपने जीवन में पुरस्कृत किया जाता है। 

मैंने कहा, “यह तुम्हारी गर्दन पर उतना अच्छा नहीं लग रहा है, अंजु, क्योंकि यह असली नहीं है।” 

“असली नहीं, तुम्हारा मतलब?” 

“नहीं, इमिटेशन ज्वेलरी है, यह नहीं कह रहा हूँ। लेकिन यह ध्रुव का नहीं है?” 

“ध्रुव का नहीं है?” अंजलि की आँखें फटी-सी-फटी रह गई। 

“यह नंदिता का है।” 

इससे पहले कि अंजलि चौंक जाए, मैं उसे समझाने लगा, “अभी निरंजन का फोन आया था। नंदिता का पसंदीदा हार ग़ायब है। ध्रुव सुबह-सुबह बिना किसी को बताए घर से बाहर निकल गया, मोबाइल भी स्विच ऑफ़ कर दिया है। निरंजन कह रहा था, नंदिता बहुत परेशान है। वे शाम को हमारे घर आने वाले थे, मगर इस वजह से केंसिल कर दिया प्रोग्राम। साथ ही, उनके ड्राइवर की भी तबीयत ख़राब है।” 

हम दोनों—अंजलि और मैं—एक दूसरे की तरफ़ ऐसे देख रहे थे, जैसे कि हम यह तय करने वाले हैं कि किसके चेहरे पर सवाल है और किसके चेहरे पर जवाब। अंजलि पूछती है, “तुम्हारा मतलब है, ध्रुव ने नंदिता से हार चुराकर हमें दिया? असम्भव।” 

ध्रुव कौन है और वह इस हार से कैसे जुड़ा हुआ है, मुझे लगता है कि पहले यह बता देना उचित होगा। 

ध्रुव हमारे घर में क़रीब बीस साल पहले काम कर रहा था। उस समय हम जलपाईगुड़ी में थे। थे का मतलब उस समय मेरी पोस्टिंग वहाँ पर थी। उस समय ध्रुव की उम्र ज़्यादा से ज़्यादा पंद्रह या सोलह वर्ष की रही होगी। लेकिन वह अपनी उम्र से काफ़ी छोटा लग रहा था। साफ़-सुथरा रहने की आदत के कारण वह बहुत अच्छा लग रहा था। ऐसे हमारे कंपनी के बँगले में काम करने के लिए सुबह स्वेटर पहनी गोरी महिला आती थीं और शाम को एक लंबी, काली, सलवार क़मीज़ पहनी महिला। मुझे केवल छुट्टियों के दिन उन्हें देखने का मौक़ा मिलता था। स्वेटर वाली पूरे साल यहाँ तक कि धूप के दिनों में भी स्वेटर पहनती थी। अब मुझे हल्का-हल्का याद आ रहा है कि स्वेटर में ऊन कम और छेद ज़्यादा थे। मुझे नहीं पता था कि कौन क्या काम करती थी, इसलिए दोनों की तुलना करना मेरे ख़ाली समय की आदत बन गई थी। अवश्य, उस समय मैं टी.वी. नहीं देख रहा था, मैं अख़बार नहीं पढ़ रहा था, कहानी की किताबें, या किसी और के रिश्ते के बारे में अंजलि की अवांछित टिप्पणियों को नहीं सुन रहा था। ध्रुव का मुख्य कार्य था, हमारे घर में तीन-तीन लोग काम करते हैं, इस विचारधारा को पुष्ट करना। अंजलि का अवास्तविक आभिजात्य का केवल पोस्टर बनकर। अंजलि से यह बात कहने पर वह चिढ़ जाती थी। लेकिन चिढ़ने पर वह उससे भी ज़्यादा ख़ूबसूरत दिखती थी। मैं अपने शयनकक्ष में सारे पर्दे खींचकर लगा देता था। और दरवाज़ा बंद कर उसे तब तक प्यार करता था, जब तक मैं थक नहीं जाता था। 

तब ध्रुव का काम था सामने का दरवाज़ा खोलना और बंद करना। जब कोई घर में आए तो उसे नमस्ते कहना। बैठने के लिए कहना या कहना कि घर पर कोई नहीं है। पानी, चाय, जूस आदि की मनुहार करना, फोन उठाना, बग़ीचे से फूल तोड़ना, किसी के घर कुछ सामान भेजना—आदि काम। 

ख़ासकर रेहा की लगभग सभी छोटी-छोटी बातों को समझना। 

उस समय रेहा तीन साल की थी। हमारी बेटी। इन दिनों वह बैंगलोर में किसी कंपनी में काम कर रही है और अपनी दुनिया में व्यस्त हैं। उस समय मुझे यह सोचने पर मजबूर हो गया कि इतनी छोटी लड़की इतनी छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखने वाला ध्रुव एक बड़े आदमी का बोन्साई है। जैसे वह एक बूढ़े आदमी का छोटा प्रतिरूप हो! 

पहले-पहले रेहा के खाने की चीज़ों को ध्रुव ज़्यादातर छुपाकर खा लेता था। सिर्फ़ आइसक्रीम या दूध या चॉकलेट ही नहीं, कभी-कभी रेहा के खिलौने लेकर अपने पुराने फटे थैले के गंदे कपड़ों के नीचे छिपा देता था। इस बात का पता लगने पर अंजलि कभी-कभार नाराज़ हो जाती थी, लेकिन मैं काफ़ी ख़ुश होता था। यह सोचकर, खेलने वाले खिलौने लेकर उन खिलौनों को कहीं छुपा देना क्या किसी खेल से कम है! 

रेहा तीन साल की, ध्रुव पंद्रह साल का और छुपाए हुए खिलौने या तो तीन दिन पुराने होंगे या पंद्रह दिन पुराने। सभी तो खिलौने हैं। सभी तो खेल हैं! 

ध्रुव की मासूमियत मुझे शुरू से ही प्रभावित करती थी और मुग्ध भी होता था जब वह रेहा के लिए अच्छा खाना निश्चित रूप से बचाकर अलग से रखता था। मुझे याद है जब वह रेहा को डीप फ़्रीज़ से आइसक्रीम लाने के लिए दौड़कर गया था और टूटे हुए खिलौने की जगह नया खिलौना ख़रीदने के लिए कहा था। मैं समझ गया था कि ‘मुग्ध’ शब्द ‘मोह’ से बना है। दरअसल, मैं अजीब तरह से मोहग्रस्त हो गया था, ध्रुव के प्रति। 

कुछ ही दिनों बाद ध्रुव बन गया था हमारी दीवार घड़ी, समाचार पत्र या टी.वी. की विशेष ख़बर। कैलेंडर की तिथि, तारीख़, वार। हमारे पड़ोसी का पहचान-पत्र। कभी-कभी तो वह मेरी गाड़ी भी चला देता था। कभी-कभी मेरी फ़ाइल की ग़लत अंग्रेज़ी वर्तनी ग़लत भी दिखा देता था। वास्तव में, उसने मेरी विचारधारा की दुनिया को ध्रुवमय बना दिया था। 

एक दिन कई बार आवाज़ देने के बाद भी ध्रुव मेरे पास नहीं आया, मानो अचानक तैयार होकर कहीं अन्तर्धान हो गया हो। मैं नाराज़ होकर उसके कमरे में गया, लेकिन न तो वह वहाँ पर था और न ही उसका पुराना थैला। वह अपने कपड़े लेकर चला गया था। लेकिन छोड़कर गया था सारे खिलौने वहीं पर। वह सभी को इस तरह सजाकर छोड़कर गया था जैसे कि वह किसी को बताना चाह रहा हो किस खिलौने के बाद कौन-सा खिलौना उसे बहुत पसंद आया और इसलिए उसने रेहा के कमरे से चुराकर अपने कमरे में लाया था, अकेले में खेलने के लिए। जैसे कि वह कहना चाह रहा हो यह बात, उसने उन सारे खिलौनों को लौटाना उचित समझा, क्योंकि हमारा घर छोड़कर जाना भी उसके लिए नया खेल था। उस दिन मुझे एहसास हुआ कि खिलौने वे नहीं हैं, जिनसे आप खेलते हैं। खिलौना एक ऐसी चीज़ है, जिसके साथ आप हो, और आपकी असहज कमियाँ उसके साथ खेलती हो, जिसे पाने की मन में इच्छा हो, जिसे छुपाने की इच्छा होती हो, जिसे ज़्यादा से ज़्यादा कुछ दिनों तक छुपाने के बाद उसे वापस करने की इच्छा पैदा होती हो। ऐसा लग रहा था कि छिपाने के क्रम में नहीं, बल्कि चेहरों को उस क्रम में सजाया था ध्रुव ने, कि मैं उन्हें याद रख सकूँ। 

किस खिलौने को मैंने ख़रीदा था या किसी ने मुझे खिलौना दिया था? 

जैसे कि एक-एक खिलौने बेचने वाले दुकानदार के चेहरे की झलक याद आने लगी हो, मगर उसके सत्यता की कोई गारंटी देने के लिए तैयार नहीं था। और दूसरे चेहरे? किसी ने टेडी बियर दिया था तो किसी ने डालमेशियन पिल्ला, किसी ने जोकर, किसी ने दूरबीन, किसने लंबे पाँवों वाली सफ़ेद गुड़िया। सभी एक के बाद एक अस्पष्ट रूप से याद आने लगे। 

अचानक मुझे याद आने लगी, रेहा। लग रहा था जैसे मेरे सीने में कुछ फँस गया हो। एक पल के लिये। रेहा कहाँ हैं? चिल्लाते हुए मैं अपने शयनकक्ष की ओर बढ़ा और अंजलि के बग़ल में रेहा को सुरक्षित निर्भय सोते हुए देखकर आश्वस्त हुआ। फिर भी शायद मेरे चेहरे से सारा डर दूर नहीं हो सका था। अंजलि पूछने लगी, “क्या हुआ?” 

“कुछ नहीं, मैं रेहा को ढूँढ़ रहा था।” 

“वह तो यहाँ सोई हुई है। अभी तो सुबह भी नहीं हुई है। क्या आप मॉर्निंग वॉक पर गए थे?” 

“हाँ, लेकिन ध्रुव घर पर नहीं है।” 

“नहीं है मतलब? फूल लेने गया होगा।” 

“नहीं, वह घर छोड़कर भाग गया है। उसका कोई सामान-पत्र नहीं है।” 

अंजलि दौड़कर ध्रुव के निर्धारित कमरे के दरवाज़े के सामने ऐसे खड़ी हो गई, जैसे कि कुछ ही क्षणों के बाद ही ध्रुव वहाँ से बाहर निकलेगा। पुराने खिलौनों से, पुराने अख़बारों से, पैकेटों से, डिब्बों से और अन्य छोटे-बड़े फेंके गए सामानों से। ऐसा लग रहा था जैसे अभी-अभी समाप्त हुए यज्ञ की ध्वंस-विध्वंसता से ध्रुव प्रकट होगा और इसलिए अंजलि मन ही मन अजपा जाप जप रही थी। 

बहुत सोचने के बाद भी हम नहीं खोज पाए थे, ध्रुव का इस तरह अचानक घर छोड़ने का कारण। याद नहीं आ रही थीं, हम में से किसी की भी उसके प्रति संभावित नाराज़गी भरी बातें। वह हमारे साथ नहीं था, बल्कि हम तीनों ध्रुव के साथ थे, ऐसी धारणा धीरे-धीरे हमारे भीतर से होती हुई हमारे पड़ोसियों, दोस्तों और क़रीबी रिश्तेदारों तक फैल गई। इसलिए हमें बताए बिना घर से निकलना कुछ भी करने से हमारे लिए बहुत बड़ा अपराध था। इसलिए सुबह से शाम तक हम ध्रुव के वापस आने का इंतज़ार करते रहे। 

कुछ देर बाद हम डर सताने लगा। उसके साथ कुछ घटा तो नहीं? कुछ दुर्घटना! 

ध्रुव शायद हमारे बँगले की चारदीवारी से मुक्त होना चाहता था, एक विस्तृत दुनिया में पलने-बढ़ने के लिए। अंजलि और मैं-हम दोनों हमेशा परवर्ती समय में सदैव ध्रुव के बड़े होने की मन ही मन इच्छा करते थे। उसके लिए ईश्वर से हार्दिक प्रार्थना करते थे। 

कई छोटी-बड़ी जगहों में काम करने और छोड़ने के बाद केवल तीन दिन पहले मुझे पता चला कि वह निरंजन की कंपनी में कुछ महीनों से काम कर रहा है। कंपनी के कार्य के बाबत में निरंजन से परिचय भी बहुत कम दिन पहले ही हुआ था। 

हमारे घर में बीस साल पहले असंभव अंतरंग सम्बन्ध बनाने की तरह ध्रुव ने निरंजन की कंपनी और परिवार में भी अत्यंत ही विश्वसनीय व्यक्ति के रूप में ख़ुद को स्थापित कर लिया था। 

कुछ दिन पहले ध्रुव से शादी समारोह के दौरान हमारी रिसेप्शन पार्टी में भेंट हो गई। अचानक वह हम दोनों के सामने आ गया। अंजलि और मैं एक अद्भुत ख़ुशी से झूम उठे थे। मैं अंजलि के चेहरे पर ख़ुशी के उज्ज्वल भाव स्पष्ट रूप से देख रहा था और मुझे लगा कि अंजलि भी मेरी आँखों में वैसी चमक देख रही थी। पता नहीं क्यों, हमारे दोनों चेहरे पर प्रतिबिंबित कर रहे थे, पारस्परिक आंतरिक उच्छ्वास। उसके सामने गलियों की सारी रोशनी फीकी लग रही थी। 

ध्रुव सचमुच बड़ा हो गया था। उसका हेयरकट भी बदला-बदला था। पता नहीं, वह कैसे लंबा और अजीब तरह से अधिक भारी लग रहा था। अपना परिचय देने के बाद भी, जब मैंने उसे घूरकर देखा तो पता चला कि वे आँखें केवल ध्रुव की थीं। उसके दाहिने कान के नीचे छोटा काला निशान भी अंजलि को याद आ गया था। वह पहले की तरह विश्वस्त और अनुगत लग रहा था। 

“नमस्कार, सर,” कहकर ध्रुव मेरे पैर छूने के लिए नीचे झुक गया। जब मैंने उसे रोका तो वह झुककर अंजलि के पैर छूकर उसी तरह प्रणाम करना चाह रहा था। चरण-स्पर्श करने से एक अद्भुत अनुभूति तैयार होती है। जिस आदमी को कोई जितना झुककर प्रणाम करता है, वह उतना ही बड़ा दिखता है, उससे ज़्यादा बड़ा दिखता है झुकने वाला आदमी। 

ध्रुव अकल्पनीय तरीक़े से बड़े से और ज़्यादा बड़ा, बेहतर से और ज़्यादा बेहतर दिख रहा था, जो मेरे पास मौजूद किसी भी काल्पनिक आकाश से टकराने के लिए सहमत नहीं था। 

“मैं ध्रुव हूँ। आप मुझे नहीं पहचान पाए। मैंने रेहा की चेन चुराकर बिना किसी को बताए आपके घर से भाग गया था।” 

क्या कोई इस तरह अपना परिचय देता है? शायद अंजलि और मैं उस समय दोनों यही बात सोच रहे थे, तभी ध्रुव ने कहा, “मुझे माफ़ कर दीजिए, मुझे सच में इस बात का अफ़सोस है। आज इतने दिनों के बाद जब आपसे मिला तो मैं अपने आपको रोक नहीं पाया। नहीं तो और कुछ दिन बाद मैं ख़ुद जाकर आप लोगों से मिलता।” 

हमें और आश्चर्यचकित करते हुए कहने लगा, “रेहा की चेन लौटानी है! इसके अलावा, मैं भी आपसे माफ़ी माँगना चाहता था। अभी मुझे क्षमा कर दीजिए। कुछ दिनों बाद चेन लौटा दूँगा।” 

न ही तो हमें ध्रुव को क्षमा करना था, न ही उससे कोई चेन वापस लेनी थी। हमें केवल ध्रुव ही चाहिए था। विराट ध्रुव। व्यापक ध्रुव। विश्वस्त ध्रुव। 

उसने पूछा, “रेहा नहीं आई? वह क्या कर रही है?” 

अंजलि ने कहा, “रेहा? ध्रुव! वह इंजीनियर बन गई है। अब वह बेंगलुरु में हैं। एक आईटी कंपनी में। अपने दोस्त के साथ शादी करेगी—कह रही थी। लड़के के घर वाले भी मान गए हैं। वह बहुत ख़ुश होगी, तुम . . . यानी आपको देखकर।” 

“नहीं, मैडम। आप मुझे ‘तुम’ कहकर बुलाएँ। मैं तो वही बीस साल पहले वाला ध्रुव हूँ। पता नहीं, रेहा अब मुझे ध्रुव या धुव्र कहकर बुलाएगी।” 

हम खुले मन से हँस रहे थे, तभी निरंजन ने आकर ध्रुव की पीठ थपथपाकर उसकी बहुत प्रशंसा करते हुए उसका अनावश्यक परिचय दिया जैसे किसी पुरस्कार पाने वाले व्यक्ति के लिए लंबी-लंबी पंक्तियाँ और गद्यांश किसी भी मंच पर उसके सम्मान में पढ़े जाते हैं। हम दोनों भी ध्रुव की महानता के लिए अनुचित रूप से अपने आपको ज़िम्मेदार महसूस करते हुए हम अजीब आनंद में खोए रहे। सारी पुरानी बातें, बीती हुई पुरानी घटनाएँ याद करने से अवर्णनीय आनंद मिलता है। आनंद में खो जाने का मौन संगीत। 

कुछ चीज़ें ऐसी भी हैं, जो अपने आपको नष्ट कर देती हैं। लेकिन कष्ट नहीं देती है। हम दोनों के सामने ध्रुव और पूर्ण, और सम्पूर्ण होने लगा था। बाद में, जब हम उस शादी की पार्टी में दूसरों के साथ बातचीत में व्यस्त हो गए थे, बंद नहीं होने वाली अलार्म घड़ी की तरह बीच-बीच में कम से कम तीन या चार बार, किसी न किसी बहाने से ध्रुव हमसे मिला और अलग-अलग ढंग से हमें आश्वस्त किया कि वह रेहा के सोने की चेन वापस कर देगा। 

आज अचानक दिन के तीन बजे ध्रुव हमारे घर आ गया, किसी मेहमान की तरह। अपने हाथ में दो पैकेट लिए हुए। एक मिठाई का डिब्बा और दूसरा ज्वैलरी का। हमने कभी नहीं सोचा था कि उसके मन में चेन वापस करने की चाहत में इतनी बेचैनी होगी। ध्रुव ने छोटी बच्ची की पतली चेन ली, जबकि लौटा रहा था महँगा हार! 
मुझे अब पूरा यक़ीन हो गया है कि वह हार नंदिता का होगा, जिसके गुम जाने से वह दुखी हो रही थी। मैं ध्रुव से सीधे पूछना चाहता था, लेकिन मुझे पता था कि उसने अपना मोबाइल स्विच ऑफ़ कर दिया था। 

फिर भी मैं ध्रुव से नफ़रत नहीं कर पा रहा था। उसे साधारण अपराधी समझने की पता नहीं क्यों इच्छा नहीं हो रही थी। मुझे पता है कि अंजलि भी ध्रुव को ऊँचे आसान पर बैठाकर रखती है। जहाँ से ध्रुव को नीचे देखना कष्टकारी है, उसे वहाँ से नीचे खींचना असंभव। 

अंजलि ने अचानक कहा, “चलो, नंदिता के घर में हार छिपाकर छोड़ आते हैं।” 

“इसे क्यों छिपाएँ?” मैंने पूछ लिया। 

“नहीं तो नंदिता को पता चलेगा कि ध्रुव ने हार चुराकर हमें दिया है। कैसा विचित्र लड़का है यह! क्या ज़रूरत थी इस तरह हार चुराकर हमें लौटाने की, फिर पतली चेन के बदले। कहा नहीं उसने, रेहा के शादी की अग्रिम भेंट।” 

“लेकिन उनके घर में किसी को बताए बिना हार कैसे लौटा सकते हैं?” 

“लौटाएँगे नहीं। चलो, हम दोनों जाएँगे। जब आप उनसे बातचीत कर रहे हो, मैं कहीं न कहीं उसे छोड़ दूँगी।” 

“लेकिन अगर निरंजन या नंदिता को नहीं मिला तो? क्या होगा अगर किसी और को मिल गया तो?” 

“आप इतनी बहस मत करो। मैं इसे ऐसी जगह रखूँगी, नंदिता को ही मिलेगा।” 

हम दोनों के लिए नंदिता को सोने का हार लौटाना हमारे जीवन का सबसे कठिन कार्य हो गया था। पता नहीं, क्यों हमारे मन में आ रहा था, कि ध्रुव को दोषारोपण से बचाना ही सबसे आवश्यक निर्बोधता है, जो केवल तर्कहीन अंतरंगता से तैयार होती है। हमारे अलावा और कोई नहीं जानता कि ध्रुव ने यह निरर्थक अपराध किया है, उसे बचाने के लिए हम अपने इष्ट देवी-देवताओं के सामने आकुल प्रार्थना करने लगे। 

निरंजन के घर पहुँचने के समय वहाँ पर उनके चारों तरफ़ एक नीरव, बल्कि विरक्तिपूर्ण ख़ामोशी पसरी हुई थी। जैसे कि बहुत ठंडे दिन में कोहरा ढक लेता है आपके जाने-पहचाने चेहरों को और वे अनजाने-अनजाने नज़र आने लगते हैं। निरंजन के कहने के अनुसार घर के हर हिस्से की तलाशी ली गई। सुबह से ही ध्रुव का कोई अता-पता नहीं, उसका मोबाइल भी स्विच ऑफ़ था। निरंजन का मन उसे चोर नहीं मान पा रहा था और नंदिता का भी, जबकि बाक़ी सभी का मानना था कि ध्रुव ने ही वह हार लिया होगा। 

अंजलि नंदिता के बग़ल में खड़ी होकर फिर से सभी संभावित स्थानों पर हार खोजने में उसकी मदद करने का निपुण अभिनय करने लगी। अंजलि ने पुलिस के अलावा किस-किस तरीक़े से हार की तलाशी ली जा सकती है, किसने हार लिया होगा—यह कैसे पता चलेगा, उन तरीक़ों की भी सूची बनाकर दे दी, जैसे नखदर्पण, प्लांचेट, मौनीबाबा, कालीमंदिर के साधक आदि। अंक ज्योतिष की मदद से या नंदिता की जन्मतिथि या राशिफल कैसे पता चलेगा, इस बारे में भी उसने बताया। 

निरंजन के विरक्त और विव्रत पलों को मैं बाँट रहा था, तभी अंजलि ने संकेत किया हार को रखने के बारे में। 

कार में बैठकर थोड़ी दूर जाने के बाद मैंने पूछा, “सही जगह पर रखा है तो?” 

“हाँ। चिंता मत करो,” अंजलि ने धीरे से कहा। 

“नंदिता को मिल जाएगा, न?” 

“हाँ, बाबा, हाँ।” 

“कहाँ रखा है?” 

“उसकी अलमारी में। उसकी फेवरेट साड़ी की तह में। उस साड़ी में, जिसे वह उस दिन रिसेप्शन में पहनकर आई थी।” 

“हार के साथ बॉक्स भी?” 

“नहीं, वह बॉक्स अब मेरे वैनिटी बैग में है।

“नंदिता के साथ खोज करते समय जब वह अलमारी के हर थोक के कपड़े देखने में व्यस्त थी, तब मैंने आराम से उस हार को साड़ी की फोल्ड में डाल दिया।” 

“लेकिन क्या नंदिता उसे ढूँढ़ पाएगी? अगर कोई और . . .?” 

“तुम इतने नेगेटिव क्यों हो? नंदिता को मिल जाएगा, नहीं तो निरंजन को। कोई दूसरा उसके कपड़ों की तलाशी क्यों करेगा?” 

“ठीक है, अब तुम उस डिब्बे को बाहर फेंक दो। उस हार से संबंधित कुछ भी रखना अब हमारे लिए ठीक नहीं है।” 

मैंने अपनी कार को सुनसान रास्ते की तरफ़ मोड़ दिया। जैसा कि मुझे पहले से ही पता था कि उस रास्ते पर कुछ दूर जाने के बाद उस हार के ख़ाली डिब्बे को कहाँ पर फेंकेगी अंजलि, और अचानक वहाँ प्रकट हो जाएगी ध्रुव की माँ। और वह बुढ़िया निरंजन का पता खोजेगी, केवल यह कहने के लिए कि ध्रुव एक न एक दिन वह हार ज़रूर लौटाएगा। 

मैंने अचानक अंजलि से अन्यमनस्क होकर पूछा, “अच्छा, इतने सालों बाद क्या ध्रुव की माँ ज़िन्दा होगी?” 

“क्यों? वह ज़िन्दा क्यों नहीं होगी? ध्रुव की आयु कितनी होगी? उसकी माँ ज़िन्दा क्यों नहीं होगी? अचानक उसकी माँ?” 

मैंने कार की सीट को थोड़ा नीचे किया और सवाल का जवाब दिए बिना कहने लगा, “डिब्बे को कूड़ेदान में फेंक दो।” 

अंजलि ने वैसा ही किया। लेकिन उसने उसे इस तरह से फेंका कि मुझे लगा कि यह गिरते ही तेज़ आवाज़ के साथ फट जाएगा। 

हुआ भी वैसा ही। 

मेरा मोबाइल बज उठा। वह आवाज़ किसी विस्फोट से कम तेज़ या कम भयानक नहीं थी। उस तरफ़ से निरंजन की आवाज़ में एक उत्तेजनापूर्ण स्वर था। 

हार मिल गया है। मैंने अंजलि के लिए दोहराया। अकारण। 

“ओह, भगवान का लाख-लाख शुक्र,” अंजलि ने कहा। 

मुझे लगा, अंजलि भी अकारण भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थी। 

“क्या हुआ?” अंजलि ने आश्चर्य से पूछा। 

“एक हार, एक बहुत ही महँगा हार, अलमारी में साड़ी के तहों में मिला, लेकिन . . .” 

“लेकिन और क्या?” अंजलि ने उत्सुकतावश पूछा। 

“लेकिन वह नंदिता का खोया हुआ हार नहीं है।” 

मैंने धीरे से कहा और अचानक कार रोक दी, जैसे हमें और आगे नहीं जाना है। 

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