“बस इतनी सी बात पर मेरा परिचय तमाम होता है
मैं उन रास्तों पर नहीं चलती जो रास्ता आम होता है..!”
कहने वाली स्वयंसिद्धा डॉक्टर सोनाली चक्रवर्ती, अपने कार्य में गतिशील हैं और पूछने पर बड़े उत्साह और आत्मविश्वास से अपनी अथक यात्रा के बारे में बताती जाती हैं, उस राह के बाहरी और भीतरी सुरंगों से गुज़रते हुए वह सामने एक रोशन मंज़िल पाती हैं। जिसमें कशमकश है, संघर्ष भी है। हाँ, संघर्ष से तो पाषाणों से भी पानी बह निकलता है। कुछ नामुमकिन नहीं, फ़क़त एक इच्छा, इच्छा में निष्ठा और निष्ठा में समर्पण होना ज़रूरी है। बस फिर राहें ख़ुद-ब-ख़ुद सामने से निकल आती हैं, भले ही वे राहें मंज़िल तक की न हों, पर हौसलों के परों पर परवाज़, इस राह पर चलने वाले साधक के लिए खुली हुई राहें मंज़िल से ज़ियादा मायने रखती हैं।
बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी…
सफ़र ही सफ़र का सिलसिला हो, जब तक तन मन तृप्त न हो जाए कि प्रभु की छत्रछाया में पुरुषार्थ के साथ जो चाहा वो पाया। यह कार्य-निष्ठा ही असली साधना है जो इबादत की हद तक ले जाती है और वही हक़ीक़ी मंज़िल है। साधक को कार्य करते करते ऐसा अनुभव हासिल होने लगे, तो यह समझना चाहिए कि उसके मन की जागृत शक्ति के साथ-साथ साथियों के मनोभावों की सरिता बह रही है, जो इस सफ़र में उसकी हमसफ़र हैं। वे सभी उस ज्ञान के सागर की लहरों से जूझते हुए अपनी अपनी नौका पार लगाने के प्रयास में कार्यरत हैं। सोनाली जी के कार्य क्षमता का विस्तार फलक तक का है।
बाहरी दुनिया से जूझने के लिए आत्मनिर्भर बनने की कोशिश को एक दिशा देते हुए, संगीत से घर के भीतर का, मन के भीतर का वातावरण लयमय बनाते हुए शिक्षा प्रदान करना एक उत्तम प्रयास की पहल है। यह प्रयास नहीं, उस मंज़िल की ओर जाती हुई पहली सीढ़ी है जो क़दम दर क़दम आगे बढ़ाते हुए सीढ़ी के आख़री पायदान तक पहुँचाने में सक्षम बन जाती है। इस राह पर निश्चित ही उतार-चढ़ाव के पैमाने, धूप छाँव के साए, कहीं पथरीली पगडंडियों पर ऊँट सी करवट लेते हिचकोले, समय-समय पर आज़माइश बनकर सामने आग़ाज़ी दिनों में ज़रूर आते रहते होंगे। पर हिम्मत-ए-मरदां तो मदद-ए-ख़ुदा वाली कहावत एक अटूट विश्वास ही है, उसी सबब भरोसे की नौका पर सवार कश्तियाँ किनारे ज़रूर लग जाती हैं। यह मेरा विश्वास है। यहाँ मुझे रामावतार त्यागी जी की कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं –
“इस सदन में मैं अकेला ही दिया हूँ;
मत बुझाओ!
जब मिलेगी, रोशनी मुझसे मिलेगी!
बेबसी मेरे अधर इतने न खोलो
जो कि अपना मोल बतलाता फिरूँ मैं
इस क़दर नफ़रत न बरसाओ नयन से
प्यार को हर गाँव दफ़नाता फिरूँ मैं
एक अंगारा गरम मैं ही बचा हूँ
मत बुझाओ!
जब जलेगी, आरती मुझसे जलेगी!”
ऐसी ही हुई यात्रा के पथ की कुछ पगडंडियों के बारे में, उन संघर्षों के बारे में, उनकी हार-जीत के बारे में, उनके इस संकल्प के बारे में सुनते है डॉ. सोनाली चक्रवर्ती से उनकी ज़ुबानी– जिसका परचम आज भिलाई, छत्तीसगढ़ में फहरा रहा है। उसी दृढ़ संकल्प की बात सामने रखते हुए वे कहती हैं–
“मैंने विवाहित स्त्रियों के साथ काम करने का बीड़ा उठाया। माता-पिता अपनी बेटियों को बहुत सी विधाओं में पारंगत करते हैं, बहुत सी कलाएँ सिखाते हैं, कविता लिखना, गाना, नृत्य, पेंटिंग, सिलाई जाने क्या-क्या (कुछ ऐसे जैसे जलावन की लकड़ी पर पॉलिश करना), और अपनी उम्र के 40 से 45 साल पार करने पर अधिकांश महिलाएँ यह कहती सुनी जाती हैं– "मैं भी बचपन में बहुत अच्छा गाना गाती थी, बहुत अच्छा डांस करती थी, एक्टिंग में तो मेरा कोई सानी नहीं था, मैं एक्ट्रेस बनना भी चाहती थी, बहुत अच्छी पेंटिंग करती थी, कविताएँ लिखती थी"।
"फिर क्या हुआ?”
फिर…
फिर मेरी शादी हो गई…
"फिर मेरी शादी हो गई"
एक ऐसा वाक्य है जिसके बाद कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति उससे आगे प्रश्न नहीं करता कि शादी हो गई तो क्या हुआ?
आपने अपने कलाओं को ज़िंदा क्यों नहीं रखा?
इसमें हमेशा ससुराल पक्ष का ही दोष है ऐसा नहीं है। इस पक्ष को स्पष्ट करते हुए सोनाली जी अपनी बात आगे बढ़ाते हुए पूरे आत्मविश्वास के साथ कहती हैं–
“मैं अपने कई लेखों और कविताओं के द्वारा इन महिलाओं को अपनी ग्रूमिंग के लिए, अपने व्यक्तित्व विकास के लिए काम करने के लिए निरंतर प्रेरित करती हूँ। मैंने कुछ ऐसी महिलाओं को जमा किया जो अब भी अभिनय में रुचि रखती हैं, और उनके लिए मैंने नाटक लिखे। हमारी अपनी अपनी ज़िंदगी में से ही नाटक के कई पात्र और घटनाएँ निकल आए…
देवी नागरानी:
सोनाली जी ‘स्वयंसिद्धा’ में विवाहित महिलाओं के इस सांस्कृतिक समूह के बारे में विस्तार से बताएँ। यह विषय अत्यंत रुचिकर और ज्ञानवर्धक है और कई क्षेत्रों में इसका ज़िक्र भी होते हुए सुना है। आज आपसे रूबरू होते हुए आपकी ज़ुबानी इसके बारे में जानना चाहूँगी?
डॉ. सोनाली चक्रवर्ती:
यह विवाहित महिलाओं का सांस्कृतिक समूह है। विवाह पश्चात भारतीय महिलाओं की प्रतिभा को आमतौर पर मंच नहीं मिलता है इसलिए मैंने इस समूह की परिकल्पना की एवं मूर्तरूप दिया। स्वयंसिद्धा में विवाहित महिलाएँ परिवार की मैनेजमेंट के बाद का समय सामाजिक कार्यों को देती हैं। इनके काम करने का तरीक़ा कुछ अलग है। यह समूह अपनी लाइट एंड साउंड शो के जरिए सामाजिक सरोकार के संदेश देती हैं जिनमें स्वच्छता, बाल श्रम, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, दहेज, सामाजिक कुरीतियाँ, अंधविश्वास, निशक्त जनों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना, बाल, युवा एवं वृद्धजनों की समस्याओं से जुड़े विषय प्रमुखता से उठाए जाते हैं। यह डेढ़ सौ से अधिक महिलाओं का समूह है जिनमें 30 लोगों की कोर कमेटी है जिनमें अलग-अलग विभाग अलग-अलग लोग सँभालते हैं। शुरू में मेरे द्वारा लिखित नाटकों को रिकॉर्ड किया जाता था जिनमें इसी समूह की महिलाएँ अलग-अलग पात्रों को अपनी आवाज़ देने के लिए वॉयस मॉड्यूलेशन सीखती रहीं। संवाद याद करके नाटकों की प्रस्तुति गृहणियों के लिए संभव नहीं होता।
हमारे समाज में ब्यूटी पार्लर या बुटीक जाती माँ को किसी सवाल का सामना नहीं करना पड़ता, परन्तु उपन्यास पढ़ती या नाटक लिखती या नाटक में अभिनय करती माता की अधिक जवाबदारी हो जाती है। और वैसे भी किसी स्त्री के बच्चे की यदि परीक्षा हो, बेटी को बुखार हो, या सासु माँ बाथरूम में गिर पड़ी हो, तो उस घर की महिला का नाटक में काम करने जाना नितांत अशोभनीय दृष्टिगोचर होगा।
इसलिए हमने तरीक़े बदले तेवर नहीं!
देवी नागरानी:
हमारी अपनी अपनी ज़िंदगी में से ही नाटक के कई पात्र और घटनाएँ निकल आएँ... इस बात से आपका संकेत किस दिशा की ओर है, और आपने इस कठिन संघर्ष की स्थिति में समस्त समस्याओं का समाधान सफलता से पाया तो कैसे?
डॉ. सोनाली चक्रवर्ती:
हमने अपनी आवाज़ रिकॉर्ड कर उस पर अभिनय कर समाज के लिए कुछ कर गुज़रने का फ़ैसला किया जिसमें गृहिणियाँ भी जुड़ सकें एवं विवाह पूर्व सीखी गई अलग-अलग विधाओं का उपयोग विवाह पश्चात भी किया जा सके। महिलाओं की प्रतिभा को निखारने और उन्हें मंच देने की ऐसी ज़िद थी कि पहले नाटक के पात्र गढ़कर उसकी कास्टिंग नहीं की जाती बल्कि महिलाओं की इच्छा को देखते हुए उनके रंग-रूप, हेल्थ, हाइट, उम्र का ख़्याल रखते हुए पात्र बनाए जाते हैं एवं उनके अनुरूप रिकॉर्डिंग की जाती है। पारिवारिक विघटन के इस विसंगतियों वाले दौर में परिवार को बाँध के रखना एवं अपने बच्चों को संस्कारित करने में एक माँ ही सबसे अहम भूमिका निभा सकती हैं। देश दुनिया की ख़बर रखने वाली शिक्षित एक्टिव एवं स्मार्ट माँ ही बच्चों को सही दिशा का ज्ञान दे सकती है। हम हमेशा ज्वलंत विषयों पर ही शो की प्रस्तुति देते है जिसकी रूप-सज्जा, वेशभूषा, डिज़ाइन, सेट डेकोरेशन, क्रिएटिव मेकअप, बैकग्राउंड डिज़ाइन आदि का प्रशिक्षण कार्यशाला में महिलाओं को दिया जाता है। राशन की सूची से लेकर धोबी के हिसाब तक और बच्चों की पढ़ाई से लेकर मेहमानों के मूड तक का हिसाब रखने वाली गृहणियाँ इस इवेंट मैनेजमेंट के काम को बड़ी सहजता से निभा जाती है।
देवी नागरानी:
महिला थिएटर वर्कशॉप आपकी सोच की उपज है, जिसे आपने बखूबी प्रयास के पसीने से सींचा होगा। इस दौरान आपको किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, और उस भँवर से आप कैसे इस पार पहुँची? आर्थिक मनोबल के सिवा तो कुछ भी कर पाना असंभव है, आपने किस तरह इस संघर्ष का सामना किया और कामयाबी पाई?
डॉ. सोनाली चक्रवर्ती:
महिला थिएटर वर्कशॉप: हमने अपनी जमा पूंजी से छत्तीसगढ़ का "पहला महिला थिएटर वर्कशॉप" आयोजित किया जिसमें 30 महिलाओं ने 16 दिन तक रोज़ाना 5 घंटे अभिनय की बारीक़ियाँ सीखीं। निरंतर 10 वर्षों से सक्रिय यह समूह आज भिलाई दुर्ग के सभी प्रतिष्ठित मंचों के साथ राज्य उत्सव, सरस मेला, ब्रह्माकुमारी महिला महा सम्मेलन, राष्ट्रीय कलाकार सम्मेलन मा.आबू, राजस्थान आदि के साथ दिल्ली के श्रीभूमि उत्सव और गोवा के “वरदाम्बिका कला मंच’ तक अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं।
हम वर्ष भर में कम से कम तीन से चार शो पूरा मानदेय या पारिश्रमिक लेकर करते हैं जिससे हमारे स्टूडियो चार्जेस, आवागमन, कॉस्टयूम, मेकअप आदि ख़र्चे निकलने के बाद जो पैसे बचते हैं वह हम जितने कलाकारों ने शो किया उसमें बराबर रूप में बाँट देते हैं। इस वज़ह से यह निशुल्क समूह आज तक "नो फ़ंड" पर काम कर रहा है।
सुनकर लगा कि यह महिला सश्क्तिकरण का एक बेमिसाल उदहारण है जो नारी मन को एक आस्था देता है, उसे अपनी पहचान पाने का अधिकार देता है और अपने भीतर की अनुभूतियों को प्रकट करने का सुनहरा अवसर भी देता है। इस सफल राह की सभी नायिकाओं को मेरा सलाम।
यह एक मयूर पूंख है जो नारी जाति के माथे को सुशोभित कर रहा है और मैं ख़ुद को भी गर्वविंत महसूस कर रही हूँ, यह परिचय पाकर कि कोई भी समुदाय पिछड़ा नहीं होता, कमतरी सोच में होती है, अपने भीतर के अविश्वास में होती है। डॉ. सोनाली जी के इस सकारात्मक सफ़र के लिए मैं उन्हें हार्दिक बधाई देती हूँ, और सभी साथी महिलाओं को शुभकामनाएँ. एक तरह से वे सभी नायिकाएँ हैं, जो समय की धार पर अपनी अपनी नाव खेते हुए चल रही है।
It's Cultural group of married women in Bhilai, Chhattisgarh https://youtu.be/6odpNRad9G0
सफ़र जारी है।..