बन, बाग़, तालाब, खिले उपवन,
चंचल बयार, चले मंद पवन।
नदियाँ गाती चलें निज पथ पर,
अद्भुत प्रकृति का यह संगम।
गतिशील सभी हैं निज पथ पर,
सबको सिखलातीं यही सीख।
रुकना न कभी जीवन पथ पर,
देती प्रकृति भी यही सीख।
काँटों में खिला गुलाब तनकर,
ख़ुशबू से भर देता उपवन।
बहते झरने की धाराएँ,
हैं राह बना लेती पथ पर।
देती हैं मनुज को यही सीख,
हो धाराएँ प्रतिकूल अगर।
हँसते गाते बढ़ते जाओ ,
एक दिन मंज़िल आएगी नज़र।