मैं ऑटो वाला और चेतेश्वरानंद – 4

15-01-2021

मैं ऑटो वाला और चेतेश्वरानंद – 4

प्रदीप श्रीवास्तव (अंक: 173, जनवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

घर लौटे तो देर हो चुकी थी। हम सब बहुत थकान महसूस कर रहे थे। आहना किचेन में जाना नहीं चाह रही थी और अकेले सास से यह सब हो पाना मुश्किल था। तो पहले मैंने ऑनलाइन खाने के लिए ऑर्डर किया। इन बड़ी कंपनियों ने मोहल्ला स्तर पर टिफ़िन सर्विस देने वालों का धंधा ही चौपट कर दिया है, नहीं तो आहना के साथ मैं इस धंधे में भी क़दम रखने वाला था। 

ऑर्डर करके सास को बताया तो उनके चेहरे पर आए भावों से लगा जैसे वह इसी की प्रतीक्षा कर रही थीं। ससुर जी की अब तक उतर चुकी थी। चर्च-मैन से गप्पे लड़ाने में लग गए थे। मिलर दंपती भी। चर्च-मैन को अगले दिन आइज़ोल, मिजोरम के लिए निकलना था। वह सास-ससुर को भी ले जाना चाहता था लेकिन उन्होंने मना कर दिया। वास्तव में चर्च-मैन फ़ॉर्मेलिटी ही कर रहा था। वह अगले दिन चला गया। 

मिलर दंपती एक और दिन रुक कर हमारे आतिथ्य भाव का गुणगान करते रहे। दोनों कुल मिलाकर एक मिलनसार व्यक्ति लगे। उन्हें सनातन संस्कृति, धर्म के बारे में, अपने भारत के बारे में मैंने अपने भरसक बहुत कुछ बताने का प्रयास किया था। दंपती ने पूरी गंभीरता के साथ बातें सुनी भी थीं। और एक ख़ुलासा भी किया कि वह अपने एक रिलेटिव के बहुत बुलावे पर भारत आए हैं और अब उत्तराखंड जाएँगे। 

उनकी भारत यात्रा का ख़र्च भी वही वहन कर रहे हैं। उनके वह रिलेटिव एक बड़े व्यावसायी हैं। वह एक भारतीय योगी के शिष्य हैं। हर साल एक महीना योगी जी के आश्रम में बिताते हैं। उनके सान्निध्य में योग, ध्यान कर पुर्नउर्जस्वित होते हैं, अपने तनाव से मुक्ति पाते है। दो साल पहले ही दीक्षित होकर "टिम मे" से तेजेश्वरानंद हो गए हैं। 

मिलर दंपती ने हमसे भी चलने के लिए कई बार आग्रह किया। जाने की इच्छा आहना के सिवा किसी की नहीं थी। लेकिन चर्च-मैन की कुटिल, कलुषित बातों से मेरे मन में उथल-पुथल मची हुई थी। अपने सनातन देश की सुरक्षा, अस्तित्व को लेकर बहुत सी बातें सोचते हुए मैं सपरिवार उनके साथ चल दिया। मन में उन योगी जी से मिलने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हो गई थी कि आख़िर उनमें ऐसी कौन-सी योग्यता है कि हज़ारों किलोमीटर दूर देश के टिम मे तेजेश्वरानंद बन गए। उस देश का नागरिक जो हमारे देश को झूठ ही गँवारों सपेरों का देश कहते हुए दो सौ वर्षों तक हम पर राज करता रहा। और वहाँ आश्रम में मैंने जो कुछ देखा, जाना-समझा उसने मेरी आँखें खोल दीं। 

"कालसर्प" दोष के अभिशाप का जो डर मुझ में बैठा हुआ था, परेशान किए रहता था, उससे मैंने मुक्ति पा ली। चर्च-मैन की बातों से जो उलझन बनी हुई थी उसका भी समाधान ढूँढ़ लिया। बड़ी बात यह कि वहाँ ससुर जी ने स्वयं ही शराब हमेशा के लिए छोड़ देने की सौगंध ले ली। तेजेश्वरानंद के साथ ध्यान योग में लग गए। मैं उन्हें उनकी इच्छानुसार वहीं छोड़कर घर वापस आ गया। मेरे मन में लेकिन अपनी सनातन संस्कृति, देश के लिए एक योजना बनती-बिगड़ती रही। सास-ससुर वहाँ दो महीने रहे। इस बीच मैं वहाँ आहना के साथ चार बार आया-गया। दो महीने बाद सास-ससुर का कायाकल्प हो चुका था। 

शिवशंकर और शिवांसी होकर शुद्ध शाकाहारी, योग-ध्यान करने वाले बन गए थे। और मैं तरुण और आहना आराधना, मिलर दंपती सनातन संस्कृति स्वीकार कर महेश्वरानंद, पत्नी एलिना से सुदीक्षा बनकर वहाँ से लौटे। साथ ही योगी जी से यह ज्ञान भी लेकर, जो उन्होंने मिलर की इस बात पर दिया था कि, ‘जातियों में खंडित समाज कहाँ एक हो सकता है। उनकी आपसी लड़ाई ही इस देश की कमज़ोर कड़ी है।’ योगी जी ने कहा, ' यह सही है। इसीलिए जाति व्यवस्था को समाप्त करना भी हमारा उद्देश्य है। इस कमज़ोर कड़ी को अँग्रेज़ों ने अपने हित में प्रयोग किया। समाज को और ज़्यादा कमज़ोर बनाया।' 

योगी जी ने उदाहरण देते हुए बताया कि, 'अँग्रेज़ों ने जाति व्यवस्था को अपने हथियार के रूप में विकसित किया। 1871, 1881, 1891 में अँग्रेज़ों ने जन सर्वेक्षण कराकर स्पष्ट समझ लिया कि इस हथियार को और धार देने के लिए इन्हें और जातियों में बाँटना होगा। इसका परिणाम था कि 1871 की गणना में उन्होंने जातियों की संख्या 3208 बताई। दस वर्ष बाद ही 1881 में 19044 बताई। तब निकोलस बी डिर्क्स नाम के विद्वान ने कहा, "यह वृद्धि जातियों के बढ़ जाने की जगह सर्वेक्षण की पद्धति को बदलने का नतीजा थीं।" यह साज़िश इतने पर ही नहीं रुकी। प्रिंसेप ने 1834 में केवल बनारस में ही ब्राह्मणों का सर्वेक्षण कर उनके भीतर 107 जातियाँ और बना दी थीं। जिससे ब्राह्मणों में ही भेदभाव और बढ़ गया। 

इस हथियार को विकसित करके अँग्रेज़ 1947 तक शासक बने रहे। यह सोचकर आप आश्चर्य में पड़ जाएँगे कि 1939 में देश की जनसंख्या तीस करोड़ थी। इतने बड़े समुदाय पर ब्रिटेन अपने मात्र पैंसठ हज़ार अँग्रेज़ सैनिकों के साथ शासन करता रहा। वास्तव में हम पर अँग्रेज़ या उनसे पहले जो आक्रांता आए वो नहीं, बल्कि हमारी जातीय भेदभाव से निकली नाकारात्मक ऊर्जा हम पर राज करती रही। जिसकी डोर विदेशियों के हाथ में होती थी। 

हमें इस झूठ पर से भी पर्दा हटाना होगा कि ऊँच-नीच भेद-भाव से केवल सनातनी समाज ही ग्रस्त रहा है। दूसरे लोग यह पर्दा डालने में इसलिए सफल हुए, क्योंकि सनातनी अपने धर्म संस्कृति के विरुद्ध किसी भी हमले, झूठ-फरेब, दुष्प्रचार पर प्रतिक्रिया करना ही भूल गए। कालांतर में तो यह भाव घर कर गया कि ‘कोउ नृप होई हमें का हानि, चेरि छांड़ि कि होइब रानी।’ 

संत तुलसी ने किसी और संदर्भ में मंथरा से यह बात कहलवाई थी, लेकिन सनातनियों ने इसे अपना स्थायी भाव बना लिया। कोई कुछ भी कहता, करता चला आ रहा है, लेकिन वो निर्लिप्त भाव से जीते चले आ रहे हैं। प्रसंग क्योंकि अँग्रेज़ों ईसाइयों का चल रहा है, तो आप ईसाइयों को ही देखिए कि इन में कितने भेद-विभेद हैं। इनमें भी एवानजिल्क, प्रोटेस्टेंट, ऑर्थोडॉक्स, कैथोलिक आदि समुदाय हैं। रोमन कैथोलिक रोम के पोप को अपना सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं। जबकि प्रोटेस्टेंट पोप जैसी व्यवस्था, परंपरा के सख्त ख़िलाफ़ हैं। वह किसी को पोप मानने के बजाय एकमात्र बाइबल पर विश्वास करते हैं। ऑर्थोडॉक्सियों ने भी अपना अलग रास्ता अपनाया है। यह भी रोम के पोप को बिल्कुल मान्यता नहीं देते। 

यह लोग जिस देश में रहते हैं, उस देश के पैट्रिआर्क को मानते हैं। ईसाइयों में यह सबसे कट्टर और परंपरावादी होते हैं। इसी प्रकार एंग्लिकन समुदाय अपने को प्रोटेस्टेंट नहीं मानते। प्रोटेस्टेंट प्रमुखतया पाँच संप्रदायों में विभक्त माने जाते हैं। बैप्टिस्ट, मैथोडिस्ट, कैल्विनिस्ट, लूथरन और एंग्लिकन। प्रोटेस्टेंटों में सबसे ज़्यादा लूथरन लोग हैं। इन्हें लूथरन इसलिए कहते हैं क्योंकि लूथर ने ही 16वीं सदी में विद्रोह किया था। जिसके परिणामस्वरूप प्रोटेस्टेंट शाखा बनी। इसीलिए इनको मानने वालों की संख्या बहुत ज़्यादा है। जैसे यह ख़ूब प्रचारित-प्रसारित किया गया कि सनातनियों में तो पूजा करने, धार्मिक ग्रंथ पढ़ने, पूजा स्थलों में प्रवेश आदि पर विभेद हैं। यह निश्चित ही हमारी सबसे बड़ी बुराई है। जिससे आज हम क़रीब क़रीब मुक्ति पा चुके हैं। 

लेकिन क्या हमने कभी, कहीं भी, किसी भी स्तर पर यह चर्चा सुनी, पढ़ी, देखी है कि ऐसा कुछ ईसाइयों में भी रहा है। विशेष रूप से मध्यकाल का समय ऐसा रहा है जब आम जनमानस को बाइबल पढ़ना क़रीब-क़रीब नामुमकिन हो गया था। क्योंकि कोई भी आमजन बाइबल की नक़ल नहीं कर सकता था। परिणामस्वरूप जनमानस को अपने ही धर्म के बारे में कुछ पता नहीं था। इस स्थिति को देखते हुए कुछ बिशपों, पादरियों ने विचार-विमर्श शुरू किया। उन्हें लगा कि ऐसे तो धर्म के प्रचार-प्रसार में बड़ी बाधा उत्पन्न हो जाएगी। इन्हीं लोगों ने निष्कर्ष निकाला कि पोप का प्रोटेस्ट करेंगे। इन लोगों ने विरोध स्वरूप बाइबल का अपनी स्थानीय भाषाओं में अनुवाद शुरू कर दिया। और नया संप्रदाय प्रोटेस्टेंट बना दिया।’ 

योगी जी ने इसी तरह की इतनी बातें बताईं  कि हम हैरान रह गए। मिलर दंपती उन्हें आवक् से देखते रहे। इसी समय मेरे दिमाग़ में आया कि यह सबसे उचित समय है कि योगी जी से 'कालसर्प' योग के बारे में भी चर्चा कर ली जाए। इसकी सच्चाई क्या है? ज्योतिष को कितना सही मानना चाहिए, उसे जीवन में कितना स्थान देना चाहिए? क्या विज्ञान की प्रमाणिकता, महत्व पौराणिक आख्यानों, ज्योतिष से ज़्यादा है? मैंने उन्हें अपने परिवार, ज्योतिषाचार्य जी की भविष्यवाणी से लेकर ईसाई बनने तक की सारी बातें विस्तार से बता दीं। 

सुन कर वह मुस्कुराए और कहा, ‘बेटा जीवन में जितना महत्व विज्ञान को देते हो उतना ही ज्योतिष को भी दे सकते हो। जैसे विज्ञान की तमाम बातें हम सही मानते हुए उन्हें पढ़ते-लिखते हैं, पढ़ाते, बताते, उसी के अनुसार आगे बढ़ते चले जाते हैं, कि अचानक ही नई खोज सामने आती है, नया सिद्धांत पुराने को ग़लत सिद्ध कर अपना स्थान बना लेता है। लेकिन समय, समाज जीवन तो तब भी नहीं ठहरता। चलता ही रहता है अपनी ही गति से। 

’उदाहरण के तौर पर तुम इस प्रकार समझने का प्रयास करो कि जैसे 1911 में अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने इलेक्ट्रॉन के प्रयोगों के बाद अपना परमाणु मॉडल प्रस्तुत किया, क्या वह परमाणु मॉडल आज भी पूर्ववत है? 1932 में जेम्स चैडविक ने परमाणु नाभिक के बारे में जो सिद्धांत प्रतिपादित किया था वह अक्षरशः आज भी वही है क्या? आगस्ट केकुले ने बेंजीन संरचना का सिद्धांत प्रतिपादित किया। जो कि कार्बनिक रसायन की महत्वपूर्ण बात हुआ करती थी। उनका सिद्धांत आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है क्या?' योगी जी साइंस के बारे में इतना कुछ जानते हैं, यह मेरे लिए आश्चर्यजनक था। हालाँकि वह बेहद सहज सरल ढंग से बता रहे थे, लेकिन फिर भी उनकी बातें मेरे स्तर से ऊँची थीं। 

उन्होंने खगोल, रसायन से लेकर जीव विज्ञान तक तमाम सम्बन्धित बातों की झड़ी लगा दी थी। मिलर की पत्नी एलिना यानी सुदीक्षा द्वारा प्रश्न पर प्रश्न करते रहने के कारण बात बड़ी देर तक साइंस की ही चलती रही। सुदीक्षा की भी साइंस को लेकर जानकारी बड़ी जबरदस्त थी। मैं बड़ा इंप्रेस हो रहा था। एक समय तो मुझे ऐसा लगा कि उसके प्रश्नों के कारण मेरे मूल प्रश्न के उत्तर की बात रह ही जाएगी। मेरी व्याकुलता योगी जी ने पहचान ली और फिर सुदीक्षा के ही एक प्रश्न के उत्तर के साथ ही उन्होंने मेरे मूल प्रश्न की ओर बात मोड़ी। 

कहा, ‘मोटे तौर पर यह समझ लो कि योग और ज्योतिष कोई पूजा-पाठ की वस्तु नहीं बल्कि विज्ञान हैं। योग के लिए तो दुनिया एक स्वर से यह मानती है कि हिरण्यगर्भ के इस विज्ञान को महर्षि पतंजलि ने क़रीब पाँच हज़ार वर्ष पूर्व ही विकास की चरम सीमा तक पहुँचा दिया है। यह पूर्णतः विकसित विज्ञान है। जिसके माध्यम से स्वस्थ रहा जा सकता है। और यह जागे हुए भारतीय समाज के सद्प्रयासों का ही परिणाम है कि प्रत्येक 21 जून को पूरी दुनिया ‘योग दिवस’ मनाती है। इसे अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना रही है। 

ज्योतिष साइंस कितनी परफ़ेक्ट है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगा सकते हो कि इसके माध्यम से चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण बरसों बरस पहले कब हुआ था से लेकर भविष्य में कब होगा इसकी घोषणा ज्योतिषी सदियों से पूर्ण एक्यूरेसी के साथ करते आ रहे हैं। जबकि मशीनों के माध्यम से की जाने वाली घोषणाएँ अक़्सर भटकती हुई मिल जा रही हैं। 

जहाँ तक बात किसी व्यक्ति के बारे में भविष्यवाणी की है, तो जैसे गणित में एक दशमलव भी ग़लत कर दिया तो उत्तर ग़लत हो जाएगा। वैसे ही ज्योतिष में तिथि, जन्म का स्थान, समय और उस समय ग्रहों की स्थिति पूर्णतः सही नहीं लिखी गई है, तो उस व्यक्ति के बारे में सही भविष्यवाणी करना संभव नहीं है। आंशिक रूप से ही कुछ बताया जा सकता है। 

इसके साथ ही यह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि, ज्योतिषी ज्योतिष विज्ञान की समग्र जानकारी रखता है? वह इस विज्ञान का प्रकांड पंडित है कि नहीं। यदि सब सही है तो निश्चित ही भविष्य की सटीक गणना की जा सकती है। इसकी आधी-अधूरी जानकारी के साथ इसका व्यवसाय करने वालों ने इसे हँसी-मज़ाक का विषय बना दिया है। ऐसे अधकचरे ज्ञानियों से बचना चाहिए। ऐसे लोगों के कारण भ्रमवश लोग अपना, अपने परिवार का जीवन बर्बाद कर लेते हैं।’ योगी जी की गणना में मैं, मेरा परिवार ऐसे ही लोगों की श्रेणी का शिकार निकला। 

मिलर यानी महेश्वरानंद, सुदीक्षा को मैंने अधकचरी जानकारियों के आधार पर जितनी पौराणिक बातें बताई थीं, उन्हीं के आधार पर उन्होंने तमाम प्रश्न करे। सुदीक्षा ने ही योग साइंस है या पूजा-पद्धित यह प्रश्न खड़ा किया था। योगी जी ने सभी का समाधान दिया। उन्होंने सारतः बताया, ‘हमें मूलतः यह समझ लेना चाहिए कि सनातन धर्म जड़वादी नहीं है कि, जो पहले कह दिया गया उस पर कोई विचार-विमर्श या परिवर्तन नहीं हो सकता। समय-समय पर नए विचार-सिद्धांत विद्वानों द्वारा रखे जाते हैं जो सनातन पौराणिक आख्यानों को और समृद्ध करते हैं। 

’उदाहरणार्थ अद्वैत वेदांत को ही देखिए, यह वेदांत की ही एक शाखा है। शंकराचार्य ने अपने सिद्धांत को ब्रह्म-सूत्र में प्रतिपादित किया। अहम्-ब्रह्मास्मि को अद्वैत वेदांत कहा। इसीलिए उन्हें "शंकरा द्वैत" संज्ञा दी गई है। शंकराचार्य की मूल बात यह है कि इस चराचर जगत में ब्रह्म ही सत्य है। बाक़ी सब मिथ्या। मगर शंकराचार्य के कह देने भर से बात यहीं ठहर नहीं जाती। ईश्वर के बारे में अनेकानेक विचारधाराएँ प्रस्तुत होती रहीं हैं। जिनमें मुख्यतः केवलाद्वैत, द्वैत, अद्वैत, द्वैताद्ववैत, विशिष्टाद्वैत जैसी अनेकानेक विचारधाराएँ हैं। 

’वास्तव में हम सनातनी कालांतर में इतनी गहरी नींद सो गए कि अपने महान पूर्वजों द्वारा दिए गए अथाह ज्ञान को ही भूल गए। अज्ञानता में बाहरी जो कहते रहे, वही सही मानते चले आ रहे हैं। विवेकानंद ने कहा, "उठो, जागो", लेकिन फिर भी हम अभी तक ठीक से जागे नहीं हैं। जब कोई बाहरी कुछ कहता है तब हम समझते हैं कि हम पहले क्या थे। अभी जब कोलंबिया यूनिवर्सिटी इरविंग मेडिकल सेंटर ने सुश्रुत को दुनिया में शल्य चिकित्सा का जनक मानते हुए अपने यहाँ उनकी मूर्ति लगाई तब हमें समझ में आया कि शल्य चिकित्सा का ज्ञान सबसे पहले हम सनातनियों को ही था। 2600 साल पहले ही सुश्रुत प्लास्टिक सर्जरी अर्थात स्किन ग्राफ्ट्स आदि में पारंगत थे।’ योगी जी से यह सब सुनकर हम, महेश्वरानंद दंपति सभी आश्चर्य में थे। 

कई चरणों में हमारे प्रश्न-उत्तर कई दिनों तक चलते रहे। वापसी वाली सुबह से पहले की रात सोते समय महेश्वरानंद ने कहा, ‘मेरा मन ब्रिटेन वापस लौटने का बिल्कुल नहीं हो रहा है। मैं योगी जी जैसे प्रोफाऊँड नॉलेज (विपुल ज्ञान) वाले महान विभूति को छोड़कर जाना दुनिया की सबसे बड़ी मूर्खता समझता हूँ। मैं यहीं हमेशा उनके साथ रहकर ग्रेट स्पिरिचुअल पौराणिक नॉलेज को पूरी दुनिया में सब तक पहुँचाना चाहता हूँ।’ मैंने कहा इसके लिए तो यह और भी ज़्यादा ज़रूरी है कि हमें योगी जी के संदेश को फैलाने के लिए पूरी दुनिया को नापना चाहिए। वह मेरी बात से जल्दी ही सहमत हो गए। अगले दिन हम सभी घर के लिए चल दिए। 

जल्दी ही मेरे मन में बराबर बनती-बिगड़ती योजना ‘सनातन सरस्वती शिशु मंदिर’ के रूप में साकार हुई। सास-ससुर संरक्षक बने। मैं आराधना के साथ उसके संचालन में लग गया। हमारा फ़ैसला अब तक यह भी था कि हम अपने पहले शिशु की शिक्षा भी अपने स्कूल से प्रारंभ करेंगे। "कालसर्प" दोष के भय ने अभी तक हमें माँ-बाप बनने से रोक रखा था। मगर यह भय आश्रम में ख़ुद ही मुझसे भयभीत होकर हमेशा के लिए दूर चला गया। जिसके कारण मैंने घर-परिवार त्याग दिया था। ऑटो रिक्शा ड्राइवर, नौकर बन चाकरी करने लगा था। संयोग था कि चर्च-मैन, मिलर दंपती मिल गए। जो योगी जी से मिलने का माध्यम बने, जिनके आशीर्वाद से स्कूल संचालक बन गया हूँ। 

और हाँ! परिवार शुरू करूँगा तो सबसे पहले बच्चे को लेकर भाई-बहनों का भय दूर भगाने ज़रूर जाऊँगा। कितने बरस हो गए सब से मिले हुए, देखे हुए। उनसे भी कहूँगा कि वह भी राष्ट्रांत्रण रोकने के मेरे अभियान में भागीदार बनें। 

तो मित्रों अब मैं ऑटो वाला नहीं स्कूल संचालक तरुण हूँ और पूरे विश्वास के साथ कहता हूँ कि साल भर के अंदर पिता बनूँगा, कई बच्चों का पिता बनने का प्लान है मेरा। आख़िर राष्ट्रांतरण रोकने और हमारा जो हिस्सा राष्ट्रांतरित हो कर अलग हो चुका है, उसे फिर से हासिल करने के लिए संख्या बल बहुत-बहुत बढ़ानी है। बहुत बड़ी करनी है। आप भी जुटिए, मैं तो जुट गया हूँ। क्योंकि सच में आज़ादी भी तो लेनी है। अभी तो धूर्त अँग्रेज़ों ने शासन चलाने हेतु सत्ता हस्तांतरित भर की है। 

आप और मेरी तरह सबको यह झुनझुना थमाया गया कि हम आज़ाद हैं। हमें आज़ादी का तोहफ़ा देने का अहसान लादकर ना जाने कितने लोग महान नेताओं में अपना नाम दर्ज कराए बैठे हैं। गीत गवाते आ रहे हैं कि दे दी आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल... इस झूठ से भी पर्दा हटाना है। बहुत भारी पर्दा है इसलिए बहुत सारे लोगों की ज़रूरत है। यह जीवन से भी ज़्यादा ज़रूरी है। जिससे आने वाली पीढ़ियाँ सच में आज़ाद रहें। सुरक्षित रहें। और हाँ! चर्च-मैन काफ़ी लंबे समय बाद फिर लौटा तो सब कुछ जानकर आश्चर्य में पड़ गया। हमने उसका पहले जैसा ही आदर-सत्कार सब कुछ किया। वह उन महान योगी जी से मिलने के लिए व्याकुल हो उठा जिनके कारण यह परिवर्तन हुआ। हमने उसे बड़े प्यार से वहाँ भेजा। आजकल वह योगी जी का मेहमान बना हुआ है। मैं यह बिल्कुल नहीं जानता कि जब वह लौटेगा तो चर्च-मैन ही रहेगा या फिर चेतेश्वरानंद या...। 
 

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