कवि सम्मेलन

आलोक कौशिक (अंक: 153, अप्रैल प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

स्वार्थपरायण होते आयोजक 
संग प्रचारप्रिय प्रायोजक 
भव्य मंच हो या कोई कक्ष 
उपस्थित होते सभी चक्ष 
सम्मुख रखकर अणुभाष 
करते केवल द्विअर्थी संभाष 
करता आरंभ उत्साही उद्घोषक 
समापन हेतु होता परितोषक 
करते केवल शब्दों का शोर 
चाहे वृद्ध हो या हो किशोर 
काव्य जिसकी प्रज्ञा से परे होता 
आनन्दित दिखते वही श्रोता 
करतल ध्वनि संग हास्य विचारहीन 
होती कविता भी किंतु आत्माविहीन 
मिथ्या प्रशंसा कर पाते सम्मान 
है अतीत के जैसा ही वर्तमान 
निर्विरोध गतिशील है यह प्रचलन 
सब कहते हैं जिसे कवि सम्मेलन 

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