कजरारे बादल
रीता तिवारी 'रीत'हे! कजरारे काले बादल,
मन देख तुझे चंचल सा हुआ।
जैसे पपीहा बेचैन हुआ,
वैसे मन यह बेचैन हुआ।
है नेह बरसता धरती पर,
धरती का मन पुलकित सा है।
जैसे प्रियतम का पाके प्रेम,
तरुणी का मन विचलित सा है।
तुम बरस रहे बनकर फुहार,
उद्विग्न हृदय में स्नेह जगा।
मन का मयूर नर्तन करता,
अपने प्रियतम को खोज रहा।
पत्तों पर तरुणाई जागी,
है महक उठा फूलों से बाग़।
दादुर भी टर-टर बोल उठे,
पपीहे को आई पी की याद।
है झूम उठा बाग़ों में मोर,
और झूम रहा है मधु रसाल।
आनंद मग्न मृग कानन में,
चहुँ ओर भ्रमण करते हैं व्याल।
मेरे इस नीरव जीवन में,
वनप्रीत फुहारें लाए हो।
अति प्रेम तुम्हें धरणी से है,
तब मेघ बरसने आए हो।
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