हृदय वेदना

01-06-2021

हृदय वेदना

संदीप कुमार तिवारी 'बेघर’ (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

दंभ  भरा  उद्‌गार  लिया था 
वृथा हृदय  में प्यार लिया था 
हमने ख़ुद को कुंठित कर के
उस पर तनमन वार दिया था
कुछ लोग आ के जीवन में, उर की  घाव दुखा जाते हैं 
हाय डूब मरो क्यूँ तेरे  मन को, ऐसे निर्मम भा जाते हैं!
 
झंझावात  को   सहते-सहते 
दुःखी   हृदय  में  रहते-रहते 
जाने उससे क्या  कहना था
कुछ न कहा मैं कहते-कहते 
जिनसे अपना नाता ना हो,ख़याल उन्हीं के सता जाते हैं 
हाय डूब  मरो क्यूँ  तेरे  मन को, ऐसे  निर्मम भा जाते हैं!
 
कितना सहज-सरल  से रहते
यदि रहते  तुम,  अकेले  रहते 
किसी से तुमको क्या लेना था
कुछ ना सुनते कुछ  ना कहते
जिसको  तुम  हँसाते  फिरते, वहीं  तुम्हें रुला जाते हैं 
हाय डूब मरो क्यूँ तेरे मन को, ऐसे निर्मम भा जाते हैं!

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