आस्था के स्वर
रीता तिवारी 'रीत'धरा के हर सृजन में गूँजते हैं आस्था के स्वर।
जगत का परम पालक वह समाया है जहाँ ईश्वर।
मनुज के वेश में आते हैं धरती पर जहाँ भगवन,
वह फूलों में बने ख़ुशबू और नदियों में बहे प्रतिपल॥१॥
चराचर में जो छाए हैं उन्हीं में जग समाया है।
इस सृष्टि में है जो कुछ भी उन्हीं की माया है।
तिमिर का कर नाश प्रकाशित जग को करते,
उनके दम से यह दुनिया उन्हीं की सब पर छाया है॥२॥
दिल में आस्था सच्ची तो ईश्वर मिल ही जाते हैं।
है कर्मों पर टिका जग, कर्म फल सब ही पाते हैं।
इस नश्वर देह की खातिर जो करते पाप जग में,
कहती "रीत" उनको कर्म फल मिल ही जाते हैं॥३॥
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