तुम्हारी याद में हम रोज़ मरते हैं

15-11-2024

तुम्हारी याद में हम रोज़ मरते हैं

सुशीला श्रीवास्तव  (अंक: 265, नवम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

1222    1222    1222
 
तुम्हारी याद में हम रोज़ मरते हैं
तुम्हारे वास्ते हम आह! भरते हैं
 
दिखाकर ख़ाब तुम तो भूल जाते हो
उन्हीं ख़ाबों में लेकिन हम विचरते हैं
 
कभी आकर पुकारो नाम से हम को
ग़मों की भीड़ में हम तो बिखरते हैं
 
तुम्हारे आगमन से हो ख़ुशी दिल में
तुम्हारी चाह में हम तो सँवरते हैं
 
बतायें किस तरह तुम को भला हम ये
मुहब्बत में तो आँसू रोज़ झरते हैं
 
अधूरे रह न जायें प्यार के क़िस्से 
यही हम सोचकर दिन – रात डरते हैं
 
जगाओ दिल में फिर से प्यार के अरमां
चले आओ कि ख़ुद से बात करते हैं

बनाओ रास्ते आसान उल्फ़त के
कँटीले रास्तों से हम गुज़रते हैं

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