बेचैन रहता है यहाँ हर आदमी
सुशीला श्रीवास्तव
2212 2212 2212
बेचैन रहता है यहाँ हर आदमी
जाती नहीं उसके नयन से भी नमी
हर आदमी की चाह होती है बड़ी
पूरी न हो गर जीस्त में ख़लती कमी
कैसे कटेगी ज़िन्दगी उन की यहाँ
जो खेलते हैं रात-दिन घर में रमी
कोई दिखाये राह उनको आज तो
मिलता न जिन को ज्ञान है छाये तमी
सुख भी यहाँ दुख भी यहाँ मिलता रहा
रुकता ही कब चलता रहा है आदमी
मंज़िल मिलेगी एक दिन ये सोचता
इस आस में आँखों में हसरत है जमी
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