मुझको वफ़ा की राह में, ख़ुशियाँ मिलीं कहीं नहीं
सुशीला श्रीवास्तव
2112 1212 2112 1212
मुझको वफ़ा की राह में, ख़ुशियाँ मिलीं कहीं नहीं
पाऊँ किसी की एक झलक, चाहतें भी रहीं नहीं
करती नहीं क़रार मैं, रहती हूँ दूर प्यार से
मैं तो किसी की चाह में, भटकी नहीं कहीं नहीं
कोई मिले क़रीब से, देखा न मैंने ख़ाब भी
कोई बढ़ाये हाथ तो, चाहती मैं नहीं नहीं
गर हो ख़ता हयात में, माँगूँ क्षमा झुका के सर
मिलती सज़ा मुझे मगर, मारें कभी सहीं नहीं
चाहे मरूँ मैं भूख से, चोरी न मैंने की कभी
मुफ़्त की रेवड़ी मिले, खाना मुझे कहीं नहीं
झूठ फ़रेब की गली, भाती नहीं मुझे कभी
खोजूँ सदा मैं सत्य को, मिलता जहाँ कहीं नहीं