पापा तुम बिन

01-06-2024

पापा तुम बिन

सुशीला श्रीवास्तव  (अंक: 254, जून प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

पापा तुम बिन जीवन में, ख़ालीपन-सा-लगता है
यादों की जब बदरी छाये, आँखों से आँसू बहते हैं
स्नेह तुम्हारा भूल न पाऊँ, मन विचलित सा-रहता है। 
पापा तुम बिन जीवन में, अब सूनापन सा-लगता है। 
 
मेरे घर के आँगन में, बादल बन छा जाना तुम
जब देखूँ मैं नभ की ओर, स्नेह बूँद बरसाना तुम। 
मेरे आँगन के गमले में, तुलसी बन खिल जाना तुम
पूजा करूँगी निश दिन मैं, अशीष मुझे दे जाना तुम
 
पापा तुम बिन जीवन में, कुछ रीता-सा लगता है
जब रजनी की बेला हो, नभ में तारे बन के आना तुम
देखा करूँगी दूर से तुमको, अपनापन दे जाना तुम। 
पापा तुम बिन जीवन में, अँधियारा सा-लगता है। 
  
जब मैं बैठूँ कभी उदास, वायु बन छू जाना तुम
सो जाऊँ जब चादर तान, सपने में मिल जाना तुम
डेहरी पर जब दीप जलाऊँ, बाती बन जल जाना तुम
मेरे मन के मंदिर में, झिलमिल कर जी जाना तुम। 
 
पापा तुम बिन जीवन में, कुछ बिखरा सा लगता है
मेरे बाग़ों की क्यारी में, सुमन बन खिल जाना तुम
महका करेगा गुलशन मेंरा, इतना तो कर जाना तुम
पापा तुम बिन जीवन में, ख़ालीपन सा लगता है। 

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