बच्चे गये विदेश कि गुलज़ार हो गए

01-09-2024

बच्चे गये विदेश कि गुलज़ार हो गए

सुशीला श्रीवास्तव  (अंक: 260, सितम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 
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बच्चे गये विदेश कि गुलज़ार हो गए
हम बाट जोहते यहाँ बेज़ार हो गए 
 
पूछा किये सभी ये, कि बच्चे कहाँ गए
इतने हुए वो दूर कि लाचार हो गए
 
कैसे कटे हयात कि अपने तो दूर हैं
यादें सता रही हैं कि बीमार हो गए
 
हम को सता रहा है, बुढ़ापा ये रात दिन
दिल लगता अब कहीं न, कि बेकार हो गए
 
आँखों में रोशनी नहीं, अब हाल क्या कहें
सूझे न कोई राह कि नाचार हो गए
 
बरबाद हो रही है मुहब्बत में ज़िन्दगी 
जब हमने की वफ़ा तो, गुनहगार हो गए
 
बदनाम हो गये हैं मुहब्बत में आज हम 
मालूम ही नहीं हुआ, अख़बार हो गए

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