आज महफ़िल में मिलते न तुम तो
सुशीला श्रीवास्तव
212 212 212 2 212 212 212 2
आज महफ़िल में मिलते न तुम तो, बात होती भी दो चार कैसे
सोचती ही रही रात भर मैं, हो गया आज दीदार कैसे
ढूँढ़ती ही रही मैं तो तुम को, मिल गये आज क़िस्मत से मुझ को,
प्यार तुम ने किया है मुझी से, आज करती भी इन्कार कैसे
दुनियादारी का था बोझ इतना, कुछ भी अहसास होता नहीं था
दास्तां क्या सुनाऊँ मैं अपनी, वक़्त करता रहा वार कैसे
मैं तो ग़म की रिदा ओढ़कर ही, बे सबब - सी चली जा रही थी
उम्र काटी है तन्हा ही मैंने, क्या बताऊँ थी लाचार कैसे
आज स्वीकार कर लो मुझे तुम, प्यार करती हूँ बस मैं तुम्हीं से
मान लो कल तलक गुमसुदा थी, अब करूँ और इसरार कैसे
बेवफ़ा मैं नहीं जानते हो, हादसों से गुज़रती रही हूँ
मुझको अपनी ख़बर ही कहाँ थी, प्यार का करती इज़हार कैसे
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