यथार्थ

01-05-2024

यथार्थ

सुशीला श्रीवास्तव  (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

आज का हर युवा विदेश जाने के लिए उत्साहित रहते हैं। कभी ऊँच शिक्षा के लिए तो कभी अच्छी नौकरी के लिए। जो एक बार चला गया वो लौटकर कहाँ आना चाहता है? विदेशी चकाचौंध में वे ऐसे लीन हो जाते हैं, जैसे दूध में पानी मिला हो। मेरा बेटा भी इससे अछूता कैसे रहता? सच यह भी है कि पढ़-लिखकर वो नाम कमाए, पैसा कमाए। हर माता-पिता यही तो चाहते हैं। उनके भविष्य के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते हैं। जब बच्चों को कामयाबी मिलती है तो ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता, पर वही कामयाबी विदेश में मिलती है तो कुछ माता-पिता ख़ुश होते हैं, तो कोई उदास। क्योंकि कोई भी माँ अपने बच्चों को आँखों से ओझल देखना नहीं चाहती। लेकिन हक़ीकत यही है कि रोज़ी–रोटी की चिन्ता में घर से दूर, एकदिन बच्चों को जाना ही पड़ता है। अपना देश हो या विदेश। नौकरी में क़ामयाबी घर बैठे नहीं मिलती। एक ऐसे ही कहानी शालिनी की है जो बेटे को विदेश भेज तो दिया पर उदासी की चादर पहन बैठ गयी। उसके अन्दर अनेक प्रश्न सामने आकर खड़े हो जाते। 

सुबह-सुबह रसोईं घर में चाय बनाते हुए अपने प्रश्नों से जूझती रही। तभी उसके पति दमन ने उसे आवाज़ लगाते हुए कहा, “शालिनी, चाय बना रही हो, या बीरबल की खिचड़ी बना रही हो? तुम्हें पता है न पेपर पढ़ते समय मुझे चाय पीने की आदत है . . . पर तुम तो अपने बेटे पवन की यादों में खोये रहती हो।” तब उसका ध्यान चाय के उबलते पानी पर गया, और थोड़ी देर में चाय बनाकर अपने पति दमन के हाथ में पकड़ाते हुए कहा, “दमन जी, आप ठीक कहते हैं कि मैं पवन की यादों में खोयी रहती हूँ। उसकी यादों के अलावा मेरी ज़िन्दगी में रह ही क्या गया है? बचपन से लेकर जवानी तक उसकी सभी यादें मेरे सामने चलचित्र की तरह चलती रहती हैं। बच्चों के बिना घर, घर नहीं होता। यह घर अब मुझे काटने को दौड़ता है। आपको तो अपने बेटे की याद आती ही नहीं।”

दमन चाय की चुस्की लेते हुए कहने लगे, “शालिनी, हमारा बेटा विदेश पढ़ने गया है। कोई घर बसाने थोड़े ही गया है। यदि बसा भी लेगा तब भी मुझे कोई एतराज़ नहीं होगा। यह सच है कि मैं तुम्हारे जैसा आँसू नहीं बहाता, रही बात याद की तो जब भी उसकी याद आती है मैं उससे मोबाइल से बातें कर लेता हूँ। तुम भी ऐसा ही कर लो, किसने रोका है?”

“हाँ मैं जानती हूँ कि अपने बेटे पवन से जब चाहे बाते कर सकती हूँ, पर घर में उसकी ग़ैर मौजूदगी मुझे खल रही है, उसका क्या करूँ। घर से पहली बार बच्चे बाहर जाते हैं तो एक माँ ही जानती है कि उसपर क्या गुज़रती है। मेरे दिल में अनेकों प्रश्न उभर आते हैं कि वह अपना काम कैसे करता होगा? वहाँ तो नौकर-चाकर भी आसानी से नहीं मिलते। यहाँ तो हर काम के लिए मुझपर निर्भर रहता था।” 

दमन उसे दिलासा देते हुए बोले, “पवन अब छोटा नहीं रहा, शालिनी। ज़रूरत पड़ने पर इन्सान सब कुछ सीख लेता है। एकदिन उसे कहीं न कहीं तो जाना ही था। दरअसल तुम्हारे पास कोई काम नहीं है इसलिए उसके बारे में सोचती रहती हो,” यह कहते हुए दमन अपने दफ़्तर के लिए तैयार होने लगे। और शालिनी उनका नाश्ता, खाना तैयार करते हुए मन ही मन कहने लगी, ‘तुम क्या जानो दमन, उसके उज्वल भविष्य के लिए हम दिल पर पत्थर रख विदा तो कर दिये। पर अपना ही घर अनजाना सा लगने लगा है। ऐसा लगता है कि मेरी बहुमूल्य चीज़ कहीं खो गई है। घर के हर कोने में उसकी यादें मौजूद हैं जिन्हें भुलाना इतना आसान नहीं। इस आँखों के आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे . . . जब उसके कमरे में जाती हूँ तो ऐसा लगता कि वह मुझे पुकार रहा है . . .अगले क्षण कुछ भी तो नहीं होता।’ 

तभी मोबाइल की घंटी बज उठी, शालिनी दौड़ पड़ी। फोन पर पवन विराजमान था। पवन अपने माता-पिता से वीडियो से बातें करने लगा। वह अपना होस्टल, खाने पीने की व्यवस्था सब वीडियो में दिखा रहा था, यह देख शालिनी को थोड़ी राहत महसूस हुई। 

देखते-देखते दो साल गुज़र गये। उसे एमबीए की डिग्री भी मिल गयी। लेकिन भारत नहीं लौटा। वहीं छोटा-मोटा काम करने लगा . . . यह सुन जितने मुँह उतनी बातें होने लगीं। लोग शालिनी से कहने लगे कि अब तुम्हारा बेटा विदेश से लौटकर तुम्हारे पास नहीं आएगा। वह अब वहीं बस जायेगा . . . अब उसकी आस छोड़ दो। तब शालिनी सोचने लगती कि क्या सचमुच पवन हमें भूल जाएगा? किस पर विश्वास करूँ। अपने बेटे पर या लोगों पर? शायद कहनेवाले अपने अनुभव से उसे हिदायत दे रहे थे। पर इतना आसान होता है क्या, एक माँ के लिए, अपने बेटे से मोह-माया तोड़नी? 

शालिनी सोचने लगी कि बच्चे अपने देश में हो या विदेश में नौकरी के लिए तो घर से दूर जाना ही पड़ता है। पर ज़रूरत इस बात की है कि वह अपने कर्त्तव्य के प्रति कितना सजग हैं। कई पास होकर भी अपने माता पिता की अवहेलना कर बैठते हैं। तो कोई दूर रहकर भी अपने परिवार के लिए बहुत कुछ करते हैं। यह तो इन्सान के व्यवहार पर निर्भर करता है। यही क्या कम है कि उसे हमारी फ़िक्र है! हमें तसल्ली देता रहता है। कि जब भी ज़रूरत पड़ेगी, वह फ़ौरन हाज़िर हो जायेगा। उसके यह शब्द हमें जीने के लिए प्रेरित करते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि मेरा पवन मुझे कभी विसरायेगा नहीं। 

दमन, सच ही तो कहते हैं कि किसी की तक़दीर को हम बाँधकर नहीं रख सकते। नाउम्मीदी हमारे मनोबल को कमज़ोर बना देती है। इसलिए जो अपने हाथ में नहीं है, उसे समय पर छोड़ देना चाहिए। अपने स्वार्थ के लिए इतनी स्वार्थी भी तो नहीं हो सकती कि उसके जीवन की ख़ुशियाँ छीन लूँ। उसकी महत्वाकांक्षा को अपनी चाहत तले रौंद दूँ। नहीं, नहीं, मेरा बेटा जहाँ भी रहे बस ख़ुश रहे। यदि यहाँ रहकर वह ख़ुश नहीं रहता, तो क्या हम पति पत्नी ख़ुश रह पाते? आज अपने जज़्बातों को दफ़न करना ही होगा। दुनिया में और भी तो माताएँ हैं जो अपने बच्चों से दूर रहकर भी ख़ुशी पूर्वक जीवन व्यतीत कर रही हैं, तो फिर मैं क्यों नहीं पवन के बिना जी सकती। सब मेरे ख़ाली दिमाग़ का फ़ितूर है। अब मैं स्वय को ख़ुश रखने का प्रयास करूँगी और दमन को भी ऐसी बातों से परेशान नहीं करूँगी। 

आज शालिनी, उदास नहीं ख़ुश लग रही थी। उसे ख़ुश-ख़ुश देखकर दमन दफ़्तर से आते हुए पूछ बैठे, “क्या बात है? रोज़ तो मुरझाये फूल की तरह बैठी रहती थी, यानी पवन की यादों में खोयी रहती थी।”

शालिनी ने ग्लास का पानी दमन के हाथ में देते हुए कहा, “आज, मैंने निश्चय कर लिया है कि अब कभी पवन की यादों में नहीं खोऊँगी। सदा ख़ुश रहूँगी। कल कि चिन्ता में अपना आज क्यों गँवाऊँ।” 

दमन ने कहा, “यही तो मैं कह रहा था। यदि अपना बेटा अपनी दुनिया में मगन है तो हमें भी अपने जीवन में मस्त रहना चाहिए। अपनी ज़िन्दगी को मनहूस क्यों बनायें? उसकी यादों के सिवा भी दुनिया में बहुत काम हैं। उसकी यादों को कमज़ोर बनाने की ज़रूरत नहीं। तुम्हेंं उदास देखर वह भी तो उदास हो जाता होगा। इसलिए उसकी ताक़त बनो। उसे हौसला दो कि जीवन में क़ामयाब हो। हम वहाँ नहीं जा सकते, उसके साथ नहीं रह सकते क्योंकि हमारा रहन–सहन अलग है। हमें अपनी मिट्टी प्यारी है। यहाँ के लोग प्यारे हैं यह हमारी कमज़ोरी है कि हम उसके साथ नहीं रह सकते। उसे तो जीवन में आगे बढ़ाना ही है। इस माया मोह से बाहर निकलना ही होगा।

“तुम अपना समय किताब पढ़कर गुज़ार सकती हो। किट्टी पार्टी में जाया करो। कभी-कभी अपनी सहेलियों के साथ भी समय गुज़ारा करो। तुम्हेंं अच्छा लगेगा।”

यह सुनकर शालिनी वैसा ही करने लगी जैसा दमन ने कहा था। अब वह ख़ुश रहने लगी। अपने रुचि के अनुसार काम करने लगी। अब उसे जीवन में ख़ुशी का अहसास होने लगा। 

एक दिन पवन का विडियो काल लंदन से आ गया। उसने अपने माता–पिता को ख़बर दी कि बड़ी कम्पनी में नौकरी मिल गयी है। वह अभी नहीं आ सकता। वह बहुत ख़ुश था। आज उसका सपना पूरा हो चुका था। यह सुनकर शालिनी और दमन भी ख़ुश थे। 

दमन कहने लगे, “शालिनी, हमारे जीवन का उद्देश्य था, अपने बेटे को एक योग्य नागरिक बनाना। आत्मनिभर बनाना। और वह उद्देश्य पूरा हो चुका है। उसे अपनी ज़िन्दगी जीने दो। हम सबको अपनी ज़िन्दगी अपने ढंग से जीना चाहिए। चिड़ियों के बच्चे पंख आते ही घोंसला छोड़ चले जाते हैं। चिड़िया कब उदास होकर बैठती है। वह भी स्वछ्न्द आकाश में उड़ती रहती है। उसकी ज़िम्मेदारी तभी तक थी जब तक उसके बच्चों की ज़रूरत थी। उसी तरह अब हमारे पवन को भी हमारी ज़रूरत नहीं। ज़िन्दगी की कठिनाइयों से गुज़र कर ही तो इन्सान आगे बढ़ता है। अपने हिस्से की कठिनाइयाँ सबको सहनी पड़ती हैं। आज वह सोने की तरह तपकर निकला है। अपने भावनाओं को समेट लो। सच्चाई को स्वीकार कर लो कि वह, अब विदेश में ही रहेगा। जीवन का यही यर्थाथ है ऊँचाई छूने की चाह ही इन्सान को प्रगति के राह पर ले जाती है। कुछ कर गुज़रने की चाह ही उसे विदेश की धरती पर ले गयी थी।” 

सच तो यह है कि आज के युवाओं में अगर साहस, बुद्धि योग्यता और उम्मीद है तो वह आगे क्यों न बढ़ें? शालिनी अब इस सच को स्वीकार कर जीने लगी। जब कभी पवन की याद आती तो दोनों पति-पत्नी फोन पर बात कर लेते। अब तो पवन ने शादी भी कर ली थी किसी विदेशी लड़की से। दमन और शालिनी ने ख़ुशी से स्वीकार भी कर लिया। 

दमन और शालिनी अब काफ़ी बूढ़े हो चुके थे। दमन बीमार रहने लगे थे। उनका लिवर ख़राब हो चुका था। डॉक्टर ने लिवर ट्रांसप्लाट करने की सलाह दी। जिसे सुनकर दमन अपने माता पिता के पास आया और उन्हें अपना लिवर देकर उनकी जान बचायी, लाखों रुपये ख़र्चे हुए। लिवर की बीमारी कोई आसान तो होती नहीं। शालिनी सोचने लगी, यदि पवन विदेश में नौकरी नहीं करता तो यह कैसे सम्भव होता। दमन को मैं कैसे बचा पाती। दमन ने अपनी ज़िन्दगी दाँव पर लगा दी, अपने पिता को बचाने के लिए। यही नहीं अपने जीवन की सारी पूँजी भी ख़र्च कर दी। बेटा हो तो मेरे पवन जैसा। 

आज दमन और पवन दोनों अस्पताल से घर आ गये हैं। कुछ दिनों बाद पवन ठीक होकर फिर विदेश चला गया यह कहकर कि माँ दुनिया बहुत छोटी हो गयी है। अब दूरियाँ कम हो गयी है। यानी लंदन हो या अमेरिका आना-जाना बहुत आसान हो गया है। जेब में पैसा हो तो मैं कभी भी तुम्हारे पास आ सकता हूँ। मैं आप-लोग को अपने साथ रखना चाहता हूँ, लेकिन आप-लोग वहाँ नहीं रहना चाहते तो मज़बूर भी नहीं कर सकता। इसलिए आप-लोग को कोई तकलीफ़ न हो उसके लिए केयर-टेकर रख रहा हूँ। जो आप-लोग का हर समय ध्यान रखेगा। चाहे रात हो या दिन। मेरी अनुपस्थिति में वह सब काम करेगा एक बेटे की तरह। मैं यही कर सकता हूँ ताकि चिन्ता-मुक्त होकर मैं अपना काम कर सकूँ। समय समय पर आता रहूँगा। यह सुनकर दमन और शालिनी ने मुस्कुरा दिये, और कहा, “बेटा इतना ही क्या कम है जो तुमने हमारा इतना ध्यान रखा। कुछ लोग तो पास होकर भी अपने माता-पिता का ध्यान नहीं रख पाते। तुम दूर होकर भी हमारे लिए इतना कर गए . . . हमारे लिए यही काफ़ी है। आज हमें तुम पर गर्व है। हमें तुमसे कोई शिकायत नहीं है। अगर औलाद अपने माता पिता की सुध लेती है तो सुख मिलता है आत्म तुष्टि का आभास होता है। वरना दुख के सागर में लोग गोते खाते रहते हैं।” 

इस तरह दमन और शालिनी ख़ुशी से जीते रहे। रिश्तेदार भी अब पवन की तारीफ़ करते नहीं थकते। आज शालिनी उनसे कह रही है। जीवन के इसी यथार्थ के साथ जीना चाहिए कि जो भी होता है अच्छा के लिए ही होता है। बच्चे बुरे नहीं होते हैं जीवन की मज़बूरियाँ माता-पिता से दूर कर देती हैं। या माता–पिता अपने सहूलियत के कारण उनसे दूर रहने लगते हैं। पर एक दूसरे के प्यार में कमी नहीं होनी चाहिए। रिश्तों की अहमियत ही ज़रूरी है। मानो आज उन्हें सुना रही है कि उसका पवन उसे भूला नहीं है। दूर रहे या पास रहे हमारी ख़बर तो लेता है। 

आज ज़माना बदल गया है। ऐसा कौन-सा घर है जिसके बच्चे विदेश में नहीं है। वे सभी ख़ुशी से जी रहे हैं अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए। क्योंकि सपने भी तो वही दिखाते हैं ऊँची उड़ान भरने के लिए। यही जीवन का यथार्थ है। 

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