मुझे प्यार कोई न कर सका
सुशीला श्रीवास्तव
बहर : कामिल मुसम्मन सालिम
अरकान : मुतुफ़ाइलुन मुतुफ़ाइलुन मुतुफ़ाइलुन मुतुफ़ाइलुन
तक़्तीअ : 11212 11212 11212 11212
मुझे प्यार कोई न कर सका, न लिखा किसी ने पयाम में
न ही बात प्यार की हो सकी, न पढ़ा किसी ने कलाम में
न किसी से वस्ल की चाह है, न ही दिल में कोई मलाल है
न किसी बहार की चाह है, मैं रहूँ मगन सिया राम में
यहाँ मुश्किलों से घिरी रही, न हताश हूँ न निराश हूँ
यहाँ आँधियों से लड़ी सदा, मिली है ख़ुशी याँ मुक़ाम में
दिया जिसने मुझ को दग़ा कभी, कहाँ चाहती मैं उसे कभी
नहीं हाथ उस से मिला सकी, न झुका है सर ही सलाम में
ये जगत तो माया की खान है, मुझे लगता झूठ जहान है
ये समय ने मुझ को सिखा दिया, मैं चलूँ अवध के ही धाम में
जिसे चाहती थी मिला मुझे, न लगाव मुझ को किसी से अब
मुझे भा गया है अवध पुरी, जहाँ सुख है राम के नाम में
न करूँ किसी से गिला कभी, न मलाल है किसी बात का
ये नसीब की ही तो बात है, नहीं रम सकी किसी काम में
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