तुम्हारा शीर्षक
अरुण कुमार प्रसादतुम्हारे आसमान पर
अन्तर्वेदना से
आर्तनाद करता हुआ सूरज।
तुम,
‘रामलीला’ के किसी आयोजन में
आपादमस्तक संलग्न।
तुम्हारे महाकाव्य की व्याख्या पर
अंतश्चेतना से
अंतस्ताप में सिर धुनता युग।
तुम
शांतिवन के किसी विशाल समारोह में
करते हुए अमरत्व की व्याख्या
आमरण।
अमरत्व में अचैतन्य अहंकार है,
अन्त:ताप नहीं।
वहाँ
हो रहा सूरज शेष।
और युग स्तब्ध।
आसमान स्याह।
और महाकाव्य नि:शब्द।
आयोजन आलोचित।
समारोह आवेशित।
निरीह टुकड़ों में बाँटकर
तुम्हें
लाया है तुम्हारा अस्तित्व।
प्रश्न सा उठ खड़ा हुआ है
आज
तुम्हारे पराक्रम का सत्व।
सुनो!
महाकाव्य के सूत्र की व्याख्या
युग को सौंप दो।
‘राम’ के पहचान को
अचंभित युग को सौंप दो।
युगपुरुष कृष्ण की रणनैतिक
राजनीति आम आदमी को
मत घोंप दो।
तुम,
वध की वेदी से
अपना सूरज उठाओ।
हवन के आग से
अपना युग बचाओ।
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