उदारवादिता

15-01-2022

उदारवादिता

अरुण कुमार प्रसाद (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

बड़ा शोर है आजकल उदारवाद शब्द का। 
चलिए देखें हाल क्या है इसके मर्म का। 
सामाजिक उदारवाद में समत्व मिलता रोता है। 
खेतिहर मज़दूर कभी किसान बन नहीं पाता है। 
साम्यवाद में अव्यवहारिक प्रजातन्त्र 
खोल लेता है अपनी आँखें, 
नेतृत्व परिवर्तन को अनावश्यक 
ऊर्जा क्षय की परम्पराएँ। 
प्रजातन्त्र में तंत्र अपरिभाषित 
अनुशासनहीनता का है। 
राजतंत्र में नृप क्रोध का पर्यायवाची 
और प्रजा की दीनता का है। 
उदारता उदारवाद से ग़ायब 
गदहे के सिर से सींग की तरह। 
उदारवादिता स्वयंभू-दण्ड, 
अरक्षित खोल उतरे अंडे की तरह। 
वैयक्तिक उदारवाद में 
व्यक्तिगत स्पर्धा ख़ुद से है। 
यहाँ उदारता भिक्षुक की 
निरीहता सी अद्भुत सी है। 
धार्मिक उदारवाद में धर्म की 
परिभाषा हैसियत से तय। 
यहाँ निरर्थक होती है 
उदारवाद की विजय या पराजय। 
स्वतन्त्रता और स्वतंत्र-विकास में 
स्वार्थ, उदारवादिता का जनक। 
नहीं होने देता भाई-भतीजावाद के 
कारावास में डाले जाने की भनक। 
धर्म एक मृत आस्था है अत: 
यहाँ उदारवाद पनपता नहीं। 
रास्ते पर यहाँ चौराहे होते नहीं 
घिसी-पिटी लकीर है स्पर्धा ठनती नहीं। 
विकास उदारवाद की ओर भेजता है 
हमें साझा बाज़ार और साझा उपयोग। 
मानवता यहीं पलती है, 
फलती-फूलती है न यह नहीं कोई संयोग। 
जीने के बेहतर तरीक़े और अवसर। 
सर्वदा मंथन नवीन सोच-विचार पर। 
गतिशील रहता है हर क्षण, हरदम। 
और रहता है ऊर्ध्व हरदम। 
विकास साझा संस्कार, बुद्धि व प्रतिभा का। 
धर्म अपने से भी बड़ी एक लकीर खींचकर 
रखता है विकास के आगे। 
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
चिन्तन
कविता - हाइकु
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में