मेरी अनलिखी कविताएँ

01-11-2024

मेरी अनलिखी कविताएँ

अरुण कुमार प्रसाद (अंक: 264, नवम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

वह प्रारम्भिक युग था, 
सभ्यताओं में संस्कृतियाँ विकसित हुई थी। 
ध्वनियों से विकसित हो चुके थे स्वर। 
स्वर से भाषा। 
चाँद का सौन्दर्य अनकहा था। 
मेरा संघर्ष अनगढ़ा था। 
 
आसमान अबूझ देवताओं से पटा पड़ा था। 
धरती चुनौती सा बिखरा हुआ था। 
मैं इनपर कविताएँ लिखना चाहता था। 
जीवन से जोड़कर इन्हें व्याख्यायित करना 
चाहता था। 
छोटी अवधि का जीवन ख़ुद को खोज न
पा रहा था। 
 
युगों बाद मैं यहाँ अपनी कविताएँ
कहने आया हूँ। 
पढ़ना ज़रूर। 
अवसाद से मुक्ति चाहता हूँ। 
अपना कवि मन तुम्हें देना चाहता हूँ। 
गढ़ना ज़रूर। 
कहने की नई, पुरानी विधाओं में
रहना चाहता हूँ। 
मढ़ना ज़रूर। 

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