प्रार्थना
अरुण कुमार प्रसाद
कुछ हास इधर लुढ़का देना
मेरी उमर बीत गयी रोदन में।
क्या कहूँ कि मैंने क्या-क्या रोया।
मैंने है अपना तन रोया।
मैंने है अपना मन रोया।
जो वचन तुम्हें देकर आया
सच कहता हूँ वो वचन रोया।
रहा सजाता तन अपना
और रहा ढहाता मन अपना।
फिर भंग ख़ुद से ही वचन अपना।
संचित बस किया रुदन अपना।
बस स्वार्थ ने मुझे हराया है
और इसके हर सम्मोहन ने।
कुछ हास इधर लुढ़का देना
मेरी उमर बीत गयी रोदन में।
अब भव्य करो मेरा जीवन।
और दिव्य करो मेरा चिंतन।
ईर्ष्या, लिप्सा सब शमन करो।
अविवेकों का सब क्षरण करो।
जीवन का अर्थ परम कर दो।
मेरा हर अहं हरण कर लो।
ऐश्वर्य, शौर्य मेरा धरम न हो।
वनिता, सुत केवल करम न हो।
अपना सच मुझमें ढाल प्रभु।
मेरा व्यक्तित्व सँभाल प्रभु।
कर अपना आशय ख़्याल प्रभु।
बस मुझे रुलाता आया है हर
भौतिकता के प्रयोजन ने।
कुछ हास इधर लुढ़का देना
मेरी उमर बीत गयी रोदन में।
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