मेरा कल! कैसा है रे तू 

01-12-2023

मेरा कल! कैसा है रे तू 

अरुण कुमार प्रसाद (अंक: 242, दिसंबर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

मेरा कल! कैसा है रे तू 

मेरा कल! कैसा है रे तू? 
तेरे ललाट पर स्वेद की गर्म बूँदें होंगी? 
तू खिलखिलाता प्रसन्न-वदन मिलेगा? 
तुम्हारे ओंठ कहने को तत्पर, मन कह नहीं सकेंगे। 
लो मैं ही देता हूँ कह। 
आख़िर मैं ही बाँचता रहा हूँ तेरा भाग्य। 
मेरा कल! कैसा है रे तू! 
 
तू सूनेगा, युद्ध की ख़बरें, संभावित विश्व‌युद्ध की। 
तू गुनेगा अपनी स्थिति इस दरम्यान
तू चुनेगा आलोचना का पथ 
तू धुनेगा युद्ध के ‘थीम’/कारण पर अपना सिर
तू भूनेगा युद्ध की पृष्ठभूमि के अवसरों को 
अपनी कढ़ाही में और 
तू बुनेगा अपने राजमहल का सपना। 

किसी अपने द्वारा ठगा जायगा तू
तेरे विश्वास को वर्णनातीत चोट होगी प्राप्त। 
तेरा आत्मविश्वास हिलेगा
तू अंदर से जायेगा टूट स्यात्। 
किसी के स्वार्थ की बलि चढ़ेगा तू
होगा तुझ पर अप्रत्याशित आघात। 
सहन करेगा तू। 
वहन करेगा तू। 
कुछ परन/प्रण करेगा तू। 
अपनी मान्यताओं से दूर गमन करेगा तू। 
अपनी खीझ और क्रोध दमन करेगा तू। 
अपनी इंसानियत दफ़न करेगा तू। 
अपने शब्दों में 
अस्तित्व में जमा सारा विष वमन करेगा तू। 
 
मेरा कल! कैसा है रे तू! 
कोई कथा या कविता लिखेगा तू! 
बाहर नहीं तो अंदर? 
दुःख, दर्द, पीड़ा से ग्रसितों को देख 
स्वार्थ परे धकेलेगा तू? 
शायद नहीं, शायद हाँ। 
 
तू मेरी तक़दीर जियेगा। 
तू मेरे तदबीर की तक़दीर जियेगा। 
पर, तू मुझे कभी नहीं जियेगा। 
मेरा कल! कैसा है रे तू!

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