गाँधी को हक़ दे दो
अरुण कुमार प्रसादअब गाँधी को– आओ, उसका हक़ दे दो।
रस्तों से उठाओ, जीवन में जगह दे दो।
संकल्प उनका सुधिजन, अधूरा नहीं रहे।
चाहे तो तन, मन, जीवन; प्राण तक दे दो।
युग का तुम्हारे, लोगो आदर्श ही तो था।
हिंसा को त्याग, सत्य का सबक़ ले लो।
‘किसी और हेतु’ जीवन जिया है जिसने।
उस आदमी को आदमी की जगह दे दो।
‘क्यों था महान सोच’, विचारो ऐ आम-जन।
व अपने विचारों को मानवीय महक दे दो।
वह अर्ध-नग्न आकृति हसरत से देखता।
तन ढँके कि वस्त्र-खादी यत्न-पूर्वक दे दो।
खादी में हों धूल कई और भूल भी कई।
सक्षम हो तो खादी को कोई पदक दे दो।
उसने जिया था जीवन, तेरे जीने के लिए।
तुम दूसरों के हित जिए, एक रूपक दे दो।
गाँधी ने पोंछें हैं दु:ख के, आँसुओं के सैलाब।
उस दु:ख के समुंदर को आओ नरक दे दो।
जितना नि:स्वार्थ कर्म करने वाले थे गाँधी।
उतना ही बड़ा सम्मान का एक फ़लक दे दो।
अब गाँधी को– आओ, उसका सारा हक़ दे दो।
रस्तों से उठाओ, अपने जीवन में जगह दे दो।
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