शिव-तत्व
अनुजीत 'इकबाल’त्याग कर जगत का उत्क्रोश
अग्रसर उत्क्रांति की ओर
उच्चारण करके ॐ का
आऊँगी कैलाश की ओर
त्याग कर माया का जाल।
टाँके उन्मूलित करके
ब्रह्मांड के
बीनूँगी अपना पटवस्त्र।
तुम्हारे शीश से लेकर
उज्ज्वल अर्द्ध चंद्र
अलंकृत करूँगी
सघन केशपाश।
निज कलेवर पर
अंगीकृत करूँगी
भस्मावशेष श्मशान।
भुजंग से लेकर
विषाक्त कालकूट
करूँगी विषपान,
यूँ मेरा दिव्य शृंगार।
तुम्हारे डमरू पर
करके आघात
रहूँगी लास्य में रत
लहराएगी तुम्हारी
नीलवर्ण देह
मेरे अनहद नाद पर।
देखोगे हे विश्वनाथ
मुझे तुम आकुलता से
जब मैं दिखाऊँगी तुमको
तुम्हारी ही भंगिमा
दिव्य संचालन से
बन जाऊँगी अंततः
दिव्यांगना।
अवलोकन करूँगी
हर उस
महा विद्या का
इंगित करेंगी जिनकी ओर
तुम्हारी अँगुलियाँ
और फिर
निर्हरण करके
अपने तन का
शिवतत्व से मिलाऊँगी
मैं शिव बन जाऊँगी।