भाई के नाम
अनुजीत 'इकबाल’असंख्य नातों का समूह
और मैं मात्र तुमको ताकती
तुम्हारे रक्षण के लिए
सर्वस्व वारती और
बन जाती रक्षामणि
फिर एक धागे को
तुम्हारी कलाई पर
बाँधकर, तुम्हारा
मान रख जाती
तुम्हारी रक्षिता
स्वयं की रक्षा का
सूत्र तुमको बाँध आती।
देखो तो ज़रा
इस मन के उपवन में
स्मृतियों के धनुवृक्ष
उग आए हैं
विवाह के वो दिन
मुझको याद आए हैं
सभी के मध्य खड़े तुम
और नज़र तुम्हारी
मेघपूरित भादों की रात जैसे
मुझे निहारती प्रेमविह्वल
नहीं मान्य मुझे
सहस्त्र मील का फ़ासला
दुनिया आँकती होगी दूरत्व
मीलों और कोसों में
लेकिन मैं सदैव तुम्हारे पास
भावप्रवण जगत में
मेरे प्रेम पगे आशीर्वचन
तुमको मिलते रहेंगे सदा
जीवन तरु में पत्रक
खिलते रहेंगे सदा
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