मायोसोटिस के फूल
अनुजीत 'इकबाल’
आकाश पर धूम्र-पुष्प दिखने लगे हैं
बिखर रहे हैं जो हर जगह अव्यवस्थित
और एक तीव्र तड़प
एक असीम विक्षोभ भरा है
जिसे बरस कर रिक्त होना है
पहाड़ की एकाकी धूसर पाल के पीछे
छिप गया है सूरज
जो कर गया है ख़त्म दिन को
अपने सुनहरी वज्र के साथ
और अब मुझे दिखती है
आकाश में उल्टी बहती हुई एक नदी
हरियाली रहित खड़ी चट्टानों
और सूखे अरण्यों का
उत्कट एकाकीपन है मुझ में
उपेक्षा और अमर्ष से उन्मत्त
देवताओं से श्रापित हूँ मैं
विनम्रता से स्वीकार करने दो कि
मायोसोटिस के रहस्यमय नीले फूल की
पीली अबाबील जैसी आँखें
याद दिलाती हैं तुम्हारी
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