गमन और ठहराव
अनुजीत 'इकबाल’सूर्य का आकाशगंगा में
अपरिचित सा मार्ग
विचरण करता जिसके गिर्द
वो श्रोत केंद्र अज्ञात
समस्त तारागण और नक्षत्रपथ
सतत हैं गतिवान
वेगित सागर के खेल से
बोझिल नीरव चट्टान
बिन सरवर के पानी सी धरा
घूमती निरंतर बदहवास
सब कुछ है आंदोलित सा
अस्तित्व का अक्षयतूणीर परिहास
अनवरत चलते इस नृत्य में
स्थिरप्रज्ञ होने की आस
क्योंकि
घटित एक ही समय पर होता
गमन और ठहराव।
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