पैंडोरा बॉक्स
अनुजीत 'इकबाल’
मन की अतल गहराइयों में
एक बक्सा पड़ा है
बंद, जर्जर, धूल से ढका
पर भीतर . . .
आवाज़ें गूँजती हैं
सपनों के छिन्न अवशेष
कुछ रक्तरंजित यथार्थ
कुछ घाव, जो स्पर्श मात्र से
रिसने लगते हैं
यह बक्सा खुलते ही
हवाओं में घुल जाएगा
विष का पुराना स्वाद
रातें फिर से डरावनी हो जाएँगी
फिर भी
कब तक सिसकियों को
चुप रहने का आदेश दिया जाए
कब तक तड़प को शब्दों से वंचित रखा जाए
कब तक मौन के आवरण में
घावों को सड़ने दिया जाए
आज नहीं तो कल
इस पैंडोरा के बक्से को खोलना ही होगा
और फिर समय
एक निर्दयी वैद्य की भाँति
किसी दिन संधान करके
विष की गाँठ खोल देगा
और हम . . .
अग्निस्नान करके
निर्बंध, मुक्त, निर्वसन
पुनः जन्मेंगे
(“पैंडोरा बॉक्स” ग्रीक पौराणिक कथाओं में एक कहानी है। पंडोरा को एक ज़ार (पिथोस) दिया गया था जिसमें दुनिया की सभी बुराइयाँ निहित थीं। जब पंडोरा ने ज़ार को खोला, तो उसमें निहित सभी बुराइयाँ दुनिया में फैल गईं, लेकिन उम्मीद (होप) ज़ार में ही बंद रह गई। आज, “पैंडोरा बॉक्स खोलना” का अर्थ है ऐसी समस्याएँ या बुराइयाँ उत्पन्न करना जिन्हें नियंत्रित करना मुश्किल हो। —सम्पादक)
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